लिव-इन

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14 May '24
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 लिव-इन(अविवाहित साहचर्य)

आओं चलों हम चलते हैं

लिए हाथों में हाथ

एक सफर तय करते है

शादी में सब रहते हैं 

हम बिन शादी के रहते हैं

आओं चलों हम चलते हैं


 

नए दौर की नयी राह पे

नई क़समों को थामे चलते है

दुनिया दारी की छोड़ के

बस अपने दिल की करते है

तुझको तुझसे ही चुरा

प्यार की कश्ती पे सफ़र करते है

आओं चलों हम चलते हैं


 

नए युग की नई बात है

पुरानी से बस इत्तिफ़ाक़ है

कौन पैमाने पे खरा उतरेगा

लिव-इन में रह परख करते है

एक रिश्ते में बंधने से पहले

सब रिश्तों की परत खोलते हैं

आओं चलों हम चलते हैं


 

पश्चिमी देशों के रंगो में रंग

खुद को मॉडर्न कर लिया है

दुनिया चाहें जो भी सोचें

इस बदलते दौर को

हमनें क़ुबूल कर लिया हैं

आओ चलों हम चलते हैं

लिए हाथों में हाथ

एक सफर तय करते हैं ॥


 

                         स्नेह ज्योति

Category:Poem



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Written by Snehjyoti Chaprana

कभी आंसमा में ढूँढता हैं कभी सपनों में खोजता हैं यें दिल हर पल ना जाने क्या-क्या सोचता है भीड़ मे तन्हाई में अपने को ही खोजता हैं