लिंसा-चिकोरी

एक अपराध गाथा



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कहानी प्रेम का हैं, धैर्य और विश्वास का हैं। साथ ही इसमें छल और प्रतिशोध भी हैं। जो कि” अपने ऊपर हुए घात के कारण उत्पन्न होता हैं। इस कहानी में कहीं-कहीं चरित्र में उदासीनता भी हैं, तो कभी आक्रामक व्यवहार भी। जीवन के कई रंगों से घुली-मिली कहानी, जिसमें अनुकूलता और प्रतिकूलता, दोनों का समान रूप से भागीदारी हैं। हां, कुछ यौवनावस्था के कारण उत्पन्न हुई भ्रांतियां भी हैं। जिसके कारण ही “लिसा-चिकोरी” नाम के भ्रामक करेक्टर का निर्माण हो जाता हैं।
धन्यवाद
मदन मोहन
प्रारंभ:-
उसके ओंठ जो गुलाब के कली की तरह खिले हुए थे। मानो मयकदा में शराब को उड़ेला गया हो। उसपर उसकी कजरारी कटार सी आँखें, जो सहज ही किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकती थी और जो एक बार उसकी ओर आकर्षित होता, उसके तीखे नैन-नक्श से निश्चित ही घायल हो जाता।
लंबा गला और गोल चेहरा, उसपर सुती हुई नाक और ऊँची ललाट। साथ ही नागिन से घने काले बाल, जो उसके घुटनों तक लटके हुए थे और कुछ बालों के समूह लट बनकर उसके चेहरे पर भी लटक रहे थे, जैसे शरारत करने के मूड में हों। 
हां, काली जिंस और गुलाबी टाँप पहने हुए वो बाला बस स्टैंड पर खड़ी थी। कंधे पर विदेशी बैग लटकाए हुए, बस का इंतजार करती हुई। हां, उसे सरोजिनी नगर जाना था, फिर लौटकर रोहिणी भी आना था। दिन के एक बजे, जब आसमान पर सूर्य तपने लगा था। साथ ही वातावरण में हल्की सी उमस भी थी,जिसके कारण उस युवती के चेहरे पर पसीने की बूंद झलक रही थी।
परंतु….युवती के चेहरे पर इस समय उमस को लेकर परेशानी नहीं थी। वह तो परेशान थी कि” उसका कीमती समय जाया हो रहा था। हां, उसे गंतव्य तक जाना था और किसी से मिलना था। हां, जरूरत भी थी मिलने की, क्योंकि’ आज उसके बिजनेस का डील फाइनल होना था। उसने जो श्टार्टअप किया था, इस डील के बाद ही सफल हो सकता था और उसकी अभिलाषा पूरी हो सकती थी। 
उसके बिजनेस टायकुन बनने की अभिलाषा, उसका वो सपना, जिसमें वो बिजनेस की दुनिया पर राज करना चाहती थी। परंतु…जानती थी, जीवन में सफलता ऐसे ही नहीं मिल जाती। हां, सफल होने के लिये धैर्य, लगन और जुनून की जरूरत होती हैं। जिसके बल पर दुनिया को जीता जा सके और अपने मन की अभिलाषा पूरी की जा सके। वह इस बात को अच्छी तरह से समझती थी, कुछ पाने के लिए बहुत कुछ खोना पड़ता हैं। सुख की सेज को त्याग कर कंटीले डगर पर चलना पड़ता हैं।
तभी तो’ पसीने से लथपथ होने के बावजूद भी वह इस उमस भरी दोपहर में बस स्टैंड के पास खड़ी थी। वह इंतजार कर रही थी कि” सरोजिनी नगर को जाने बाली बस कब आए और वो उसमें बैठकर अपने गंतव्य की ओर चल पड़े। उधर की ओर चल पड़े, जिधर से उसके लक्ष्य का रास्ता खुलता हैं। जहां पहुंचने के बाद उसके सपनों को पंख लगने बाले थे, वह चाहती थी, वहां पर उड़कर पहुंच जाए। हां, काश कि” उसके पंख लगे होते, तो अब तक तो वहां पर पहुंच भी चुकी होती।
हां, उसके मन के विचार, जिसमें वह ऐसा सोच रही थी। हलांकि’ वह जानती थी, यहां खड़े रहने पर उसके जिस्म को कामुक भेड़ियों की नजर बेध ही देगी। सच’ उसका सोचना गलत भी नहीं था, क्योंकि’ जब से वह बस स्टैंड पर आई थी, वहां पर बड़ी संख्या में मौजूद पुरुष उसको ही घुरे जा रहे थे। बस’ घुरे जा रहे थे और उसके अंग-प्रत्यंगों का अनुमान लगा रहे थे। उसकी सुंदरता को तो नहीं, परंतु….. उसके जिस्म के माप का अंदाजा लगा रहे थे और मन ही मन कामुक आहें भर रहे थे। 
जो कि” अस्वाभाविक हैं, क्योंकि’ देखना और नजर के द्वारा ही अंग-अंग को बेध देने की कोशिश करना, दो भिन्न बातें हैं। दोनों के अर्थ भी अलग हैं और प्रभाव भी। क्योंकि’ दोनों का प्रयोजन ही अलग-अलग हैं। जहां पर देखना, मतलब कि” कोई चीज सुंदर हैं, जो मन को लुभाती हैं और हम उसकी ओर सहज ही आकृष्ट हो जाते हैं। उसकी सुंदरता के कायल बन जाते हैं और मन ही मन उस सौंदर्य की भूरी-भूरी प्रशंसा करने लगते हैं, उससे अजीब तरह के आनंद और शांति का अनुभव करते हैं।
जो कि” नेचुरल हैं। इंसान में प्रकृति ने ही इस गुण को दिया हैं और प्रकृति ने खुद को सौंदर्य से सजाया हुआ हैं, जिससे मानव मन को सुख-शांति की अनुभूति हो सके। लेकिन’ जब यही नेचुरल गुण विकृति का रूप ले लेता हैं, तो पूछो ही मत। इसके बाद मन सौंदर्य को निहारने की अभिलाषा नहीं सेवता, वह तो आँखों के माध्यम से ही अपनी कामनाओं की पूर्ति कर लेना चाहता हैं। वह जिसको देख रहा होता हैं, उसके जिस्म को आँखों के द्वारा ही मथ डालने के प्रयास में लग जाता हैं।
तभी तो उस युवती को लग रहा था, जैसे हजारों की संख्या में आँखें उसके जिस्म में चुभती जा रही हो। जैसे उसके आवरण को जबरदस्ती उठाने के प्रयास में जुटी हुई हो। बस’ इतनी सी बात और वो बेचैनी सी महसूस कर रही थी। बस’ जल्दी से बस आ जाए और यहाँ से निकल सके, यही बात उसके दिमाग में घूम रहा था। धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और परेशान सी वो, लेकिन’ उसे लंबा इंतजार नहीं करना पड़ा।
क्योंकि’ सरोजिनी नगर को जाने बाली बस आ चुकी थी। हाश!....अब इन बेधने बाली आँखों से छुटकारा मिला। सोचकर वह बस में चढ़ गई और नजर इधर-उधर घुमाया। बस आधी खाली थी, इसलिये उसने खिड़की साइड की शीट खाली देखकर बैठ गई। बस’ एक मिनट, वह अभी शीट पर बैठकर अपनी सांसों को संयत ही कर रही थी कि” तभी बीस वर्ष के गबरू नौजवान ने बस में प्रवेश किया और बिना इधर-उधर देखे उसके बगल में आकर उससे सटकर बैठ गया।
बस’ एक अजीब से बेचैनी से भर गई वह युवती। क्योंकि’ उस युवक का इस तरह से करीब आकर सटकर बैठ जाना उसको अच्छा नहीं लगा था। उसमें भी जब बस आधी से ज्यादा खाली थी, उसका यूं करीब आ के बैठना उसके मन में शंका उत्पन्न करने लगा। 
फिर तो’ स्थिति भी उसी ओर इशारा कर रही थी, इसलिये वह खुद को असहज महसूस करने लगी। परंतु…इस तरह असहज होने से भी तो काम नहीं चलने बाला था। हां, इस तरह से अगर असहज होती हैं, तो अगला उसको कमजोर समझ लेगा और गलती करने की गुस्ताखी करेगा।
बस’ इसी भय को कम करने के लिए वह खुद को नियंत्रित करने की कोशिश करने लगी। लेकिन’ यह क्या?...वह अभी तो ऊहापोह में ही थी कि” युवक ने उसकी आँखों में देखा और मुस्करा पड़ा। उसकी जानलेवा मुस्कराहट, क्योंकि’ वह भी कम आकर्षक नहीं था। उसका व्यक्तित्व, जो किसी को भी सहज ही अपनी ओर चुंबक की मानिंद खींच ले। हां, वह छ फूट का आकर्षक कद-काठी का नौजवान था।
लेकिन उसकी सुंदरता और उसके ये कोमल मुस्कान, जो युवती पर कोई प्रभाव नहीं डाल सके। उलटे वह मन ही मन भयभीत हो गई। तभी तो’ अपने मन के भय को छिपाने के लिए उसने बैग को खोला और उसमें से चिंतन शिविर” नाम की पुस्तक को निकाल कर पढ़ने की कोशिश करने लगी। 
लेकिन’ जब मन व्यग्र बन चुका हो, पुस्तक के पृष्ठ निरस से बन जाते हैं। फिर तो, मन पर स्थिति से उत्पन्न हुई भावना ही हावी होने की कोशिश करता हैं। तभी तो’ वह युवती भले ही खुद को किताब के पन्नों में खुद को बीजी दिखाने की कोशिश कर रही थी, परंतु…कनखियों से उस युवक को ही देख रही थी। जो उसकी ओर देखकर निरंतर ही मुस्कराए जा रहा था।
अरी ओ सुंदरी….सफर में पुस्तक का जरूरत नहीं होता हैं। सफर में तो जरूरत होता हैं, आस-पास देखने की ओर लोगों से बातें करने की, क्योंकि’ सफर के बाद फिर मिलना संभव नहीं होता। उस युवक ने जब उसको इस तरह से बेचैन देखा, उसको संबोधित करके बोल पड़ा, फिर मुस्कराने लगा। 
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तंजानिया होटल एंड रेस्टोरेंट, जिसका बहुधा आँफिसियल मीटिंग और पार्टी के लिए उपयोग होता था। काफी विशाल क्षेत्रफल में फैला हुआ होटल एवं रेस्टोरेंट, जिसकी बहुमंजिला भव्य इमारत अपने इतिहास का गुणगान करती थी। चारों तरफ विशाल पार्किंग क्षेत्र, स्वीमिंग पुल और गार्डेण से शोभित यह होटल किसी का भी मन मोह लेती थी। लेकिन’ यहां उच्चतम सुविधा और अधिक भाड़ा होने के कारण साधारण वर्ग के लोग नहीं आते थे। बस’ अमीर घर के लोग ही इस होटल के अंदर दाखिल हो पाते थे।
तभी तो’ अभी भी बावला ग्रुप एंड केमिकल कंपनी” का यहां मीटिंग चल रहा था। शाम के चार बजे, जब होटल के बाहर सन्नाटा पसरा हुआ था, अंदर भव्य मीटिंग रूम में बावला ग्रुप के सीनियर अधिकारी, जो कि” बीस की संख्या में थे और ग्रुप के चेयर मैन रंजित बावला, कंपनी के आगे की योजना को लेकर मीटिंग में उलझे हुए थे। हां, हाँल में इस बात को लेकर मीटिंग चल रहा था कि” कंपनी के व्यापार को किस तरह से बढ़ाया जाए। साथ ही कंपनी का अपने कस्टमर के साथ मधुर संबंध स्थापित हो, इस बात पर भी गहन मंथन किया जा रहा था, क्योंकि’ कंपनी के मार्केट कैप में निरंतर ही उतार-चढ़ाव बना हुआ था।
हलांकि’ कंपनी ने अपनी स्थिति को सुधारने के लिए आई. पी. ओ रीलिज किया था। किन्तु’ उसका कोई सकारात्मक असर नहीं दिख रहा था। जिसके कारण कंपनी का साख दिनों-दिन गिरता जा रहा था। बस’ आज के मीटिंग का मुख्य एजेंडा भी यही था।
कंपनी के चेयर पर्सन रंजित बावला अभी कंपनी के शीर्ष अधिकारियों के साथ इसी बात को लेकर गहन मंथन में जुटे हुए थे। हां, इस समय वह वहां पर मौजूद अधिकारियों को बतला रहे थे कि” किस तरह से कंपनी अपना मार्केट कैप नुकसान कर रहा हैं। साथ ही वह यह भी उनको बतला रहे थे कि” अगर ऐसा ही चलता रहा तो’ कंपनी को दिवालिया होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।
कंपनी के वर्तमान स्थिति के बारे में बतलाते हुए वे, लेकिन उनके चेहरे पर कुछ अजीब प्रकार का उलझन था। हां, लगता था कि” जैसे उनका मन इस समय मीटिंग में न होकर कहीं और विचरण कर रहा हो। हां, बिल्कुल ऐसा ही था, तभी तो उनकी निगाह बार-बार कलाईं घड़ी पर चली जाती थी, जैसे कि” उनको किसी का इंतजार हो। जैसे उन्हें किसी से मिलना हो। हां, उनकी नजर कहीं और घूम रही थी। तभी तो’ बात करते-करते अचानक ही वह अलग रूट पर चले जाते थे और जब गलती का एहसास होता था, अपने आप को संभालते थे और मुख्य विषय बिंदु पर आ जाते थे। 
धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ता हुआ समय और वहां चल रही मीटिंग। तभी अचानक ही रंजित बावला के मोबाइल ने वीप दी। फिर तो’ बड़ी फुर्ती के साथ उन्होंने काँल रिसिव किया और जैसे ही उधर से किसी युवती का स्वर उभड़ा, उनका चेहरा प्रसन्नता से भर गया। इसके साथ ही उधर से कहा गया कि” सर’ मैं उज्वला प्रियदर्शी, जो कि” आपसे मिलने के लिए आने बाली थी, वेटिंग रूम में आपका इंतजार कर रही हूं। 
इतना भर उधर से कहा गया और रंजित बावला का चेहरा खुशियों से भर गया। पचपन वर्षीय बावला, चेहरे पर फ्रेंचकट दाढ़ी, लंबी करारी मूंछ और गौर वर्ण लिए गोल चेहरा। सिर पर हिप्पी कट बाल और आँखों पर चश्मा और आकर्षक कद-काठी, उसपर कीमती कोट पैंट पहने हुए। स्वाभाविक लग रहा था कि” उनके व्यक्तित्व से कोई भी आकर्षित हो सकता था। उसपर उस युवती ने जैसे ही आने की सूचना दी थी, उनका चेहरा मधुर मुस्कान से भर गया था, जिस के कारण वे अधिक आकर्षक लग रहे थे।
उसपर उनके चीते की तरह चाल। बस’ दो फलांग में ही मीटिंग रूम से निकल कर गेस्ट रूम में पहुंच गए, जहां पर बस स्टैंड बाली लड़की सोफे पर बैठी हुई थी। हां, उस सुंदर युवती का नाम उज्वला प्रियदर्शी ही था। जो अब जाकर होटल में पहुंची थी और सोफे पर बैठकर सुस्ता रही थी। 
ऐसे में जैसे ही रंजित बावला ने गेस्ट रूम में कदम रखा, वह चौंक कर उठ खड़ी हुई। साथ ही उसके हाथ प्रणाम की मुद्रा में जुड़ गए। जबकि’ बावला ने जब उसको देखा, मुस्कराए और उसको बैठने के लिए बोल कर खुद भी सोफे पर बैठ गए और जब उज्वला प्रियदर्शी भी बैठ गई, पहले तो उसकी आँखों में देखा, फिर गंभीर स्वर में उससे बोल पड़े।
मिस उज्वला!......आप चाय या काँफी लेना पसंद करेगी?
सर!....फिलहाल तो इन बातों को छोड़कर हम उस बात पर चर्चा करें, जिसके लिए आपने बुलाया हैं। तो मैं समझती हूं कि” बेहतर होगा। उनकी बातों को सुनते ही वो बोल पड़ी। जबकि’ उनकी बातों को सुनने के बाद रंजित बावला मुस्कराए। फिर दूसरे ही पल गंभीर हो गए और कुछ सोचने लगे। परंतु….इस दरमियान उनकी निगाह उज्वला पर ही टिकी रही।
सर!....आपने मेरी बातों का कोई उत्तर नहीं दिया?...उन्हें इस तरह से चुप्पी साधे देखकर फिर से बोल पड़ी उज्वला प्रियदर्शी।
मिश उज्वला!....वह तो ठीक हैं, परंतु….अभी मैं कंपनी के बहुत महत्वपूर्ण मीटिंग में इन्वाँल्व हूं। ऐसे में आपको ज्यादा समय नहीं दे सकता। बस’ आप चार लाइन में अगर मुझे समझा दे कि” आपका सर्विस लेने से बावला ग्रुप को क्या फायदा होगा?....इसके बाद की प्लानिंग मैं आपको बतला दूंगा। उसे इस तरह से उकताया हुआ देखकर बोल पड़े मिस्टर बावला। फिर उन्होंने अपनी निगाह उसके चेहरे पर टिका दी। हां, वह उसके चेहरे को पढ़ना चाहते थे, ताकि’ उसको समझ सके।
सर!....मेरी व्योम केयर इंटर्नशीप लिमिटेड नाम की कंपनी हैं, जिसकी फाऊँडर मैं हूं। साथ ही आपको बतलाना चाहूंगी कि” मेरी एजेंसी कस्टमर रिलेशनशिप मनैजमेंट का काम देखती हैं और अब तक एजैंसी की कूल अस्सी साखाएँ हैं, जो देश के विभिन्न हिस्सों में कार्यरत हैं। ऐसे में मैं जहां तक समझती हूं, आप अगर एजैंसी की सर्विस लेंगे, आप और हम दोनों लाभान्वित होंगे। 
लेकिन मिश उज्वला!....आपने तो कहा था, आपने श्टार्टअप किया हैं, तो फिर आपके एजैंसी का आकार इतना विशाल कैसे हो गया?.....उसकी बातें सुनकर आश्चर्य में डूबे हुए स्वर में बोल पड़े मिस्टर बावला। जबकि’ उनकी बातों को सुनने के बाद मुस्कराई उज्वला प्रियदर्शी। फिर उसने उनकी आँखों में देखा और सोफे पर पहलू बदलने के बाद पूरे आत्मविश्वास के साथ बोला। 
सर!....आप शायद रघुनाथ प्रियदर्शी को नहीं जानते, अथवा जानकर भी अंजान बन रहे हैं। एक समय दयालु फर्टिलाईलजर के सर्वेसर्वा। परंतु….किन्हीं कारणों से उनको कंपनी के आधे शेयर बेचने पड़े। मैं उनकी ही पोती हूं और इस डिजास्टर से सीख लेकर मैंने उनके ही संरक्षण में इस सर्विस की शुरुआत की हैं।
ग्रेट उज्वला प्रियदर्शी!....आपके इस साक्षात्कार से मैं बहुत प्रभावित हुआ हूं। फिर भी, साथ काम करने से पहले जरूरी हैं कि” मैं आपको जान लूं और आप मुझे जान ले। कहने के बाद कुछ पल के लिए रुके रंजित बावला, फिर उन्होंने उसकी आँखों में देखा और आगे बोल पड़े।
इसलिये आप अपनी कंपनी की प्रोफाईल मुझे दे-दे और कल दोपहर को कंपनी में आकर वहां की स्थिति देख ले। इसके बाद हम लोग आगे की डील डन करेंगे।   
कहा उन्होंने और फिर चुप्पी साध ली। जबकि’ उज्वला प्रियदर्शी समझ गई, अब वे बात करने के मूड में नहीं, इसलिये उसने बैग में से ग्रे कलर की फाइल को निकाला और उनकी ओर बढ़ाया। फिर’ जैसे ही मिस्टर बावला ने फाइल को पकड़ा, वह उठ खड़ी हुई। इसके साथ ही वह सधे कदमों से पूरे आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ी और कुछ पल में ही गेस्ट रूम से बाहर निकल गई। जबकि& मिस्टर बावला दम साधे हुए उसपर ही नजर टिकाए रहे, जब तक कि” वह वहां से बाहर नहीं निकल गई।
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क्रमश:-

Category:Fiction



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Written by मदन मोहन" मैत्रेय

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