उसे इस तरह से आश्चर्य चकित होकर हाँल का निरीक्षण करते देखकर उज्वला हैरान हो गई। हां, क्योंकि’ अमोल परासर का हरकत उसके समझ में ही नहीं आ रहा था। उसने जिस तरह से एक दिन पहले उससे बलजबड़ी संबंध बनाने की कोशिश की थी और अब उसके घर आ धमका था और अब दीदे फाड़ कर अंदर की सुंदरता को निहार रहा था। उज्वला को समझते देर नहीं लगा था कि” अगला जरूर उसके संबंध में मन में कोई इरादा पाले हुए हैं। तभी तो’ वो तनिक तेज स्वर में बोली।
ऐ मिस्टर!...इस तरह से हाँल में क्या देख रहे हो?....वैसे तुम्हारी हरकतों से तो यही लगता हैं कि” तुमने अब तक ऐसी इमारत नहीं देखी हैं। उज्वला ने उसके चेहरे को देखकर रूक्ष स्वर में कहा। इसके बाद अपनी निगाह उसके चेहरे पर टिका दी और उसके मन के भावों को पढ़ने की कोशिश करने लगी। जबकि’ उसकी बातों को सुनकर अमोल परासर चौंक उठा उसकी तंद्रा टूट गई और उसके चेहरे को देखने लगा कुछ पल तक, इसके बाद संयमित स्वर में बोल पड़ा।
सही फरमाया आपने मिस उज्वला!......मैंने अब तक किसी मकान की इतनी भव्यता नहीं देखी हैं। वैसे भी, मैं मीडल परिवार से विलाँग करता हूं। ऐसे में इस तरह के भव्य महलों को देख सकूं, इतनी क्षमता अपने अंदर विकसित नहीं कर सका हूं। कहा उसने और फिर एक पल रुका, साथ ही अपनी नजर उज्वला के चेहरे पर डाल दी। हां, वह उज्वला के मन की बातों को पढ़ना चाहता था, परंतु….उसे इस में सफलता नहीं मिली। फिर भी वह मुस्करा उठा और उसकी ओर देखकर आगे बोल पड़ा।
वैसे मिस!....जहां तक हाँल देखने की बात हैं, तो वह स्वाभाविक ही हैं। किन्तु’ फिलहाल तो मैं आपका अतिथि हूं और जहां तक मुझे मालूम हैं, अतिथि देवता के समान होते हैं। ऐसे में मैं इतना आशा तो कर ही सकता हूं कि” आप पानी और गरमा-गरम काँफी के लिए पुछेगी। वैसे भी आपका अभी यही धर्म हैं कि” आप मुझ से इन चीजों के बारे में पुछे और पिलाए भी।
जरूर-जरूर, क्यों नहीं श्रीमान!....वैसे भी आप जैसे जबरन आ धमके मेहमानों के सेवा-सत्कार में कमी नहीं होनी चाहिए। तो आप आराम से सोफे पर बैठिए, तब तक मैं आपके स्वागत-सत्कार की तैयारी देखती हूं। उसकी बातों को सुनने के बाद जबरन मुस्करा कर बोली उज्वला। फिर उसने अपने कदम किचन की ओर बढ़ा दिए, जबकि’ अमोल, उसकी बातों को सुनकर मुस्कराया, फिर आराम सो सोफे पर बैठ गया।
इसके बाद’ जब उज्वला उसकी आँखों से जैसे ही ओझल हुई, वह अपने मन के विचारों में उलझ गया। क्योंकि’ कल जो उसने उज्वला को बस में सफर करते हुए देखा था, यही सोचा था कि” वह साधारण परिवार की होगी। लेकिन’ अब, जब उसने इस बिला के अंदर कदम रखा था और यहां की भव्यता को देखा था तब से अचंभित सा बना हुआ था उसका मन।
साथ ही उज्वला को लेकर उसके मन की धारना बदल गई थी। फिर भी, न जाने क्यों, वह ढ़ृढ़ बना हुआ था, उससे संबंध बनाने को लेकर। वैसे भी’ पैसे में इतनी ताकत नहीं कि” वो संबंधों के आड़े आ जाए। संबंध तो दो दिलो की बात हैं, जो जज्बात से शुरु होती हैं। बस’ जरूरत हैं तो इस बात की कि” जज्बात का अंकुरन कैसे हो?....किस तरह से अगले को अपनी ओर आकर्षित किया जाए?.....किस तरह से अगले को अपने बारे में बतलाया जाए कि” अगले के हृदय में जज्बात के हिलोरे उठने लगे।
बस’ उसे इन्हीं बातों पर ध्यान केंद्रित करना था और वह कर भी यही रहा था। बस’ प्लान, जो वह अपने मन में बना रहा था कि” किस तरह से उज्वला को अपने शीशे में उतारा जाए। वह उन तमाम पहलुओं पर मंथन कर रहा था। जिससे कि” आसानी से वो उज्वला को अपने मन की बातों को समझा सके। उसे एहसास दिलवा सके कि” हमारे साथ संबंध बांध लो। उसे बतला सके कि” हमारे साथ संबंध बांधने में आपको कोई नुकसान नहीं होने बाला। बस’ आप हमें अपना ही समझिए।
वह तमाम बातें, जो उसके दिमाग में गुंज रहा था। जिसे वह मंथन करने में जुटा हुआ था और कोशिश कर रहा था कि” कोई उचित रास्ता निकल जाए। तभी उसके कानों में पदचाप की आवाज सुनाई दी, जिसके कारण उसकी तंद्रा टूट गई। फिर तो उसने नजर उठाकर देखा और पाया कि” उज्वला काँफी का कप लिए हुए उसके सामने खड़ी हैं। फिर तो वह मुस्करा पड़ा और उसके हाथों से कप ले लिया। साथ ही उसकी आँखों में झांकते हुए मधुर स्वर में वह बोल पड़ा।
धन्यवाद मिस उज्वला!....जो आपने मुझे अतिथि समझा और एक कप काँफी से स्वागत किया। कहा उसने, फिर काँफी की चुस्की लेने लगा। परंतु….उसकी निगाह तो उज्वला के आँखों में ही गुथी हुई थी। शायद उसके मन के भावों को पढ़ना चाहता था। बस’ उसकी इस हरकत को उज्वला भांप गई। फिर तो’ उसने उसके चेहरे पर नजर गड़ाया और तेज स्वर में बोली।
श्रीमान!....आप यूं जो बदतमीजी पर उतरे हुए हैं, शायद आपके लिए स्वस्थ वर्धक नहीं हो। बोलने के बाद वह एक पल रुकी और सामने बाले सोफे पर बैठ गई। इसके बाद कुछ पल तक वो अपनी सांसों को नियंत्रित करती रही, इसके बाद आवेशित होकर बोली।
मिस्टर अमोल परासर!....आपने इस भव्य बिला को देखकर इतना तो समझ ही लिया होगा कि” मैं अगर चाहूं, तो एक पल में ही आपको इस हरकत का मजा चखा सकती हूं। फिर भी, आप इस बिला में आए हैं और खुद को अतिथि उपनाम से संबोधित कर रहे हैं। शायद यही कारण भी हैं कि” आप अभी तक सुरक्षित बचे हुए हैं श्रीमान परासर।
अरे….रे..रे, आप तो नाराज हो गई मिस उज्वला। किन्तु’ मैंने ऐसी कोई हरकत नहीं की हैं, जो आप को इस तरह से नाराज होना पड़े। उसकी नाराजगी भरी बातों को सुनकर अमोल गंभीर स्वर में बोल पड़ा। जबकि’ उसकी बातों को सुनी-अनसुनी करके उज्वला आगे बोल पड़ी।
इसलिये श्रीमान!....बेहतर यही होगा कि” आप कप खाली कर के जल्दी ही यहां से विदा हो जाए। ताकि’ मैं आप में उलझने की बजाए अपने काम पर ध्यान दे सकूं। कहा उसने और उसके चेहरे को घुरने लगी। बस’ अमोल समझ गया कि” अब ज्यादा जुबान चलाना हितकर नहीं। इसलिये उसने जल्दी से कप को खाली किया और टेबुल पर रख दिया, फिर तो पलक झपकते ही उसने बाहर का रास्ता पकड़ लिया।
जबकि’ उज्वला, उसका मन जो वर्तमान में अमोल परासर के कारण उग्र बन चुका था, कुछ पल तक तेज सांस लेकर अपने आवेश को नियंत्रित करती रही। फिर उठ खड़ी हुई और तेज कदमों से चलती हुई अपने आलीशान बेडरूम में पहुंच गई और तैयार होने लगी।
क्योंकि’ आज उसको बावला ग्रुप एंड कंपनी में जाना था विजिट करने के लिए। क्योंकि’ वह बिजनेस मैन के खानदान की खून थी, इसलिये इस विजिट के महत्व को समझती थी। हां, वह जानती थी, इस विजिट से ही उसके श्टार्टअप का भविष्य तय होना हैं। ऐसे में अगर उससे कोई भी गलती हुई, उसके हाथों से महत्वपूर्ण डील आते-आते रह जाएगा।
अब’ भला वो क्यों चाहती कि” बिजनेस के शुरुआती चरण में ही असफलता का स्वाद चखना पड़े?....इसलिये वह तैयार भी हो रही थी और अपने तैयारियों का अवलोकन भी कर रही थी। परंतु…उसका दिमाग, जो अमोल परासर पर जाकर उलझा हुआ था, ठीक से काम नहीं कर रहा था।
उसके मन में बार-बार यही प्रश्न कौंध रहा था कि” वह अंजाना शख्स, जिसका नाम अमोल परासर हैं, आखिर उसके पीछे क्यों पड़ा हुआ हैं?....बस’ यही प्रश्न, जहां पर आकर उसका मन अटक जाता था। क्योंकि’ इस बात को वह अच्छे से समझती थी, आज के समय में किसी के पास भी बेकार का समय नहीं हैं कि” किसी के पीछे खर्च करें। मतलब, अमोल परासर उसके पीछे जरूर किसी मकसद को ही लेकर लगा था। लेकिन’ वह मकसद क्या हो सकता हैं?....इस प्रश्न का उत्तर जानना उसके लिए बहुत जरूरी था।
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यमुना बिहार को जाने बाली बस, जो सड़क पर सरपट भागी जा रही थी। सुबह के नौ बजे, जब आँफिस टाइम होता हैं, इसके कारण सड़क पर ट्रैफिक की तादाद थी, परंतु….ड्राइवर को मानो इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। वह तो अपनी धून में मस्त बस को आगे की ओर फूल रफ्तार में भगाए जा रहा था।
वही बस में बैठे हुए अधिकांश यात्री झपकी लेने में मस्त थे। परंतु….उज्वला, वह तो आगे आने बाले पल को लेकर सोच में उलझी हुई थी। क्योंकि’ वह अभी तक न तो बावला ग्रुप को ही समझ पाई थी और न ही रंजित बावला को ही। ऐसे में उसे वहां पर पहुंचने के बाद किन हालातों का सामना करना पड़ेगा, इस बात को लेकर उसके मन में सहज ही आशंका जागृत हो रहा था।
हां, तभी तो उसके चेहरे पर तनाव था। तनाव इसलिये भी था कि” अगर डील फाइनल नहीं हुआ, तो उसके बाद क्या?....जानती थी, उसने जिस एजैंसी का नींव रखा हैं, उसे इसी तरह के बड़े डील की जरूरत हैं, अन्यथा तो’ उसका बिजनेस टायकुन बनने का सपना ऐसे ही धरासाई हो जाएगा।
नहीं-नहीं, इस तरह से अपने सपने को टूटते देखना उस के बस की बात नहीं। भले ही इसके लिए उसे चाहे कितनी भी मेहनत करनी पड़े, परंतु….वह अपना मुकाम हासिल कर के रहेगी। वह अपने एजैंसी के काम को इस तरह से अंजाम देगी कि” उसके पास आँडर ही आँडर होगा। इन तमाम बातों से सहसा ही विचलित हुई उज्वला और फिर वो खुद से बोल पड़ी।
इसके बाद उसने अपने बैग से रूमाल निकाला और चेहरे पर छलक आए पसीने को पोंछा। तभी उसे एहसास हुआ कि” बस रुकी हुई हैं। फिर क्या था, उसने खिड़की से बाहर देखा और चौंक गई। क्योंकि’ बस’ यमुना बिहार पहुंच चुकी थी और स्टैंड पर खड़ी थी। साथ ही उसने देखा यात्री उतर रहे थे। फिर क्या था, उसने बैग संभाला और बस से बाहर निकल गई। साथ ही, वहीं खड़े आँटोरिक्शा बाले को हाथ दिया और बैग को कंधे पर लटकाए हुए उसमें जाकर बैठ गई।
किधर जाना हैं मैडम?....उसके अंदर बैठते ही रिक्शा ड्राइवर, जो कि” पंजाबी था, उसने उसकी ओर देखा और बोल पड़ा। जबकि’ उसने ड्राइवर की बातों को सुनकर उसकी ओर एक बार उचटती हुई निगाह से देखा और संयमित स्वर में बोल पड़ी।
बावला ग्रुप एंड कंपनी में लेकर चलो।
कहा उसने, फिर मोबाइल निकाल लिया और उसमें स्टाँक एक्सचेंज देखने लगी। जबकि’ उसकी बातों को सुनने के बाद आँटो बाले ने इंजन श्टार्ट किया और आगे बढ़ा दिया। इधर’ उज्वला भले ही स्टाँक एक्सचेंज को देख रही थी, उसमें अपना मन पिरोने की कोशिश कर रही थी, परंतु….ऐसा हो नहीं पा रहा था। क्योंकि’ उसके मन पर तो बोझ पड़ा हुआ था, आने बाले समय को लेकर।
मन में तमाम तरह की चिंताएँ, जो उसको विकल कर रही थी। हां, वह बार-बार उसी बिंदु पर लौट कर आ जाती थी, जहां से उसने घर से निकलने के बाद सोचने की शुरुआत की थी। मन में तमाम तरह की आशंकाओं का दौर, क्योंकि’ इस तरह के बड़े डील के बारे में उसे कोई अनुभव नहीं था। बस’ इस तरह का डील करना था, उसका उद्देश्य इसमें निहित था, इसलिये वो रंजित बावला से मिली थी और अब आज जब वह इसके संदर्भ में बावला ग्रुप एंड कंपनी में जा रही थी, आशान्वित भी थी।
मैम’ आपका मुकाम आ गया। अचानक ही ड्राइवर ने आँटो को रोका और उसकी ओर मुखातिब होकर बोल पड़ा। बस’ इसके साथ ही उज्वला की तंद्रा टूट गई। फिर तो’ उसने एक बार ड्राइवर की ओर देखा, फिर आँटो से बाहर निकली, बैग उठाया और कंधे पर लटकाया। इसके बाद भाड़ा चुका कर पलट कर देखा।
सामने बावला ग्रुप एंड कंपनी का विशाल बोर्ड लटक रहा था। जिसके पीछे विशाल क्षेत्रफल में बाऊँड्रीवाल थी। उसने देखा, बाऊँड्रीवाल के अंदर कंपनी की मशीनरी लगी हुई थी, जिसके चलने की आवाज इलाके को गुंजायमान कर रहा था। साथ ही एक लाइन से बनी हुई भव्य बिल्डिंग, जो कि” कंपनी का ही पार्ट होगा, अथवा तो आँफिस की बिल्डिंगे होगी। बाऊँड्रीवाल के अंदर देखते ही वो खुद से बोल पड़ी।
साथ ही उसकी नजर कंपनी के गेट को तलाश करने लगी, जिससे कि” वह कंपनी के अंदर पहुंच सके। बस’ कुछ पल और उसने देखा, सड़क से एक छोटी सड़क बाऊँड्रीवाल से लगकर बाईं ओर की ओर चली गई थी। साथ ही उसने कंपनी के दूसरी ओर ट्रकों को खड़ा देख लिया था। बस’ वह समझ गई, कंपनी का गेट उधर ही हैं, तभी तो उसने कलाईं घड़ी पर नजर डाला, जो दिन के दस बजा रहे थे। इसके साथ ही वह यह सोचकर कि” कुछ लेट हो गई हैं, उधर को चल पड़ी।
बस कुछ कदम, जो उसने तेजी से चलकर पूरा किया और कंपनी के गेट पर पहुंच गई। इसके बाद कंपनी के गेट पर पहुंच कर उसने सिक्युरिटी को अपने बारे में बताया। इसके साथ ही गेट खोलकर अंदर ले लिया गया और उस आँफिस का रास्ता बतला दिया गया, जिसमें रंजित बावला बैठते थे।
फिर क्या था, वो उस आँफिस की ओर तेज कदमों से चलती हुई बढ़ गई, अचंभित बनी हुई सी। क्योंकि’ कंपनी की विशालता, वहां की व्यवस्था और साफ-सफाई ने उसको आश्चर्य में डाल दिया था। मतलब साफ था, रंजित बावला जरूर नियम के पक्के होंगे और एक्टीविटी पर ज्यादा ध्यान देते होंगे। तभी तो’ कंपनी में जिधर देखो, वहां के स्टाफ काम करते ही नजर आ रहे थे।
मिस उज्वला!....आइए-आइए, मैं आपका ही कब से इंतजार कर रहा था। जैसे ही उज्वला ने आँफिस के काँरीडोर में कदम रखा, रंजित बावला ने उसकी ओर मुस्करा कर देखा और बोले। फिर उन्होंने उसकी ओर हाथ बढ़ाकर मिलाया और अपने आँफिस के अंदर ले गए। इसके बाद उन्होंने उसको बैठने के लिए इशारा किया और जब वो बैठ गई, तो उन्होंने भी कुर्सी संभाल ली और उसकी ओर मुखातिब होकर बोल पड़े।
मिस उज्वला प्रियदर्शी!....आशा करता हूं कि” आपने आते वक्त यहां की व्यवस्था को देखा होगा और आपको पसंद आया होगा?...कहा उन्होंने, फिर रुके और उसके चेहरे की ओर देखने लगे। जबकि’ वो, आँफिस के अंदर आने के बाद लगातार ही आँफिस को देख रही थी। वहां की साज-सज्जा उम्दा ढंग से की गई थी और वहां की तमाम वस्तुएँ इम्पोर्टेड थी। ऐसे में जब उसने रंजित बावला की बात सुनी, उसकी तंद्रा टूट गई। फिर तो उसने उनकी ओर देखा और संयमित स्वर में बोल पड़ी।
ग्रेट सर!....यहां के व्यवस्था को देखकर मैं इतना तो समझ गई हूं कि” आप मनैजमेंट के मास्टर हैं।
तो ठीक हैं मिस उज्वला!....मैं कंपनी के जी. एम. स्नेह सत्यार्थी को बुलवा देता हूं। वे आपको कंपनी के अंदर घुमा भी देंगे और जरूरी जानकारी भी दे देंगे। इसके बाद हम लोग डील पर बात करेंगे। कहा रंजित बावला ने और फिर इंटर काँम का स्वीच दबाने के लिए हाथ बढ़ाया।
तभी कंपनी का चपरासी, जो कि” पैंतालीस वर्षीय औसत कद-काठी का था, लगभग दौड़ता हुआ ही आँफिस में प्रवेश किया। इसके साथ ही उसने रंजित बावला के कान में कुछ बोल। बस’ पलक झपकते ही मिस्टर बावला के चेहरे का रंग उड़ गया। इसके साथ ही वह तेजी से उठ खड़े हुए, जैसे उनके नीचे स्प्रिंग लगा हुआ हो और फिर वे बाहर की ओर दौड़े।
फिर क्या था, उज्वला भी उठ खड़ी हुई और उनके पीछे लपकी। इसके साथ ही वो आँफिस बिल्डिंग के दाईं ओर बने आँफिस में पहुंच गई, जहां बावला पहले ही पहुंच चुके थे। परंतु…उसे तो जानना था, ऐसा क्या हुआ हैं, जो मिस्टर बावला इस तरह भागकर यहां पर आए हैं। इसलिये उसने आँफिस के अंदर नजर डाला और जैसे ही अंदर का दृश्य देखा, बिल्कुल सन्न रह गई। हां, कुछ पल के लिए तो यही लगा कि” उसको काटो, तो खून नहीं। हां, क्योंकि’ अंदर का दृश्य बहुत भयावह था।
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क्रमश:-