जिंदगी के लम्हे

जिंदगी के लम्हे

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20 Jun '24
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क्या आप ने कभी जहाज का सफर किया है (jindagi ki hakikat) अगर नही किया तो कोई बात नही ट्रेन का सफर तो आप ने जरूर किया होगा क्या कभी आप ने ये गौर किया है के सफर जहाज से हो या ट्रेन से हर सफर तकलीफ देह जरूर होता है इस सफर में कई पाबंदियां आप पर लागू कर दी जाती है जिन्हे आप बोहोत रजा मंदी से कुबूल भी कर लेते है 

 

मिसाल के तौर पे आप को बस एक खास जगह पर मेहदूद कर दिया जाता है लेकिन आप बिना कुछ बोले मान जाते है आप को इस सफर में सफर के दौरान ये आजादी नहीं होती के आप अपनी मर्जी से सफर के दौरान अपनी मर्जी से चहल कदमी करते हुए इधर उधर जा सकें बल्के जहाज के सफर में तो आप को सीट बेल्ट से बांध दिया जाता है 

 

और आप कोई ऐतराज भी नही करते बातरूम वहेराह का कोई खास इंतेजम ना होने के बावजूद भी आप को कोई शिकायत नहीं होती हाला के ट्रेन के मुकाबले जहाज का बातरूम इतना तंग होता है के पता ही नही चलता के कब शुरू हुआ और कब कथम हो गया चाहे एरपोट हो या रेलवे स्टेशन भीड़ भाड़ की वजह से आप को तकलीफ जरूर होती है लेकिन आप खामोश रहते हैं (jindagi keya hai) और जादा सोर भी नही मचाते कभी सर्दी तो कभी गर्मी में कोई सही इंतेजाम न होने के बावजूद बर्दास्त करना पड़ता है लेकिन कभी कोई मुसाफिर इस बात की शिकायत नहीं करता और ना ही आप ने कभी कोई ऐसी मिसाल सुनी होगी के  मौसम की सख्ती से बचने के लिए किसी मुसाफिर ने किसी रेलवे स्टेशन पर कोई नोकर रखा हो 

 

या कोई रेस्ट रूम बनाया हो तो मेरे दोस्तों आखिर क्यों नही इस तरहा की कोई इमारत रेलवे स्टेशन पर कोई मुसाफिर नही बनता जवाब बोहोत आसान है क्योंके सब जानते है के ये तकलीफें कुछ ही समय के लिए हैं आखिर किस मुसाफिर को पड़ी है के ऐसी जगह पर इमारते बनाता फिरे क्यूंकी सभी जानते है के हमे कोनसा हमेशा इस स्टेशन पर ही रहना है और ये भी जानते है के ये इंतेजार गाह है ना के आराम गाह इसलिए तकलीफ चाहे ट्रेन के सफर में हो या जहाज के सफर में हर इंसान इस तकलीफ को बरदास कर लेता है क्योंकी वो जानता है के ये तकलीफें कुछ ही समय के लिए हैं और ये ठिकाना भी कुछ ही देर का है और आगे मंजिल है जहां पोहोच कर आराम ही आराम है 

 

तो मेरे दोस्तो जरा ठहरिए जरा रुक जाइए और इतना जरूर सोचिए कि क्या ये दुनियां रेलवे स्टेशन की तरह नहीं है क्या कुछ देर का ठिकाना नहीं है क्या हमेशा हमे यहीं रहना है या हमारी मंजिल कहीं और है क्या आप को नही लगता के जो जिंदगी आप गुजार रहे हैं वो चाहे 20 साल की हो या 60साल की कियूं ना हो क्या ऐसा मेहसूस नही होता 

 

 

के जैसे दुनियां आए हुए अभी कुछ लम्हे ही हुए है लेकिन हम जिंदगी के कई साल गुजार आए है क्या कल हमारे बुजुर्ग बच्चे या जवान नही थे क्या आप को ऐसा मेहसूस नही होता के साल पलक झपकते हुए गुजर रहें हैं अभी एक ईद आती नही के दूसरी सर पे आकर खड़ी हो जाती है कहीं ऐसा तो नहीं के हम खुद को धोखा दे रहें है 

 

तो सोचिए के कहीं इस दुनियां का सफर एक ऐसा सफर तो नही जिसे हम असल समझ कर इसे ही सब कुछ समझ बैठे हैं और इसकी जबाइस में इतने मगन हैं की अब तो गाड़ी छूट जाने का खौफ भी हमारे दिल से निकल चुका है मेरे दोस्तों अजीजो ये दुनियां भी एक ट्रेन की तरह है और हम इसके मुसाफिर है हमको एक ना एक दिन ये ट्रेन जरूर छोड़ना है और अपनी आखरी मंजिल की तरफ जाना है यानी कब्र में तो मसला ये है के वहां रहने के लिए क्या हमारे पास कोई सामान है वहां रहने के लिए हम अपने साथ कोई सामान अपने साथ लेकर जा रहें है 

 

या हम खाली हाथ है इस बारे मे जरूर सोचिएगा अगर हम अपने आप पर नजर दौड़ाएं तो हम इस आरजी दुनियां में रहने के लिए ज्यादा से ज्यादा मॉल जमा कर रहे हैं बड़े बड़े घर बना रहे हैं लेकिन हम ये भूल चुके हैं के ये तो बस आरजी ठिकाना है असल ठिकाना तो कहीं और है 

 

 

Category:Travel



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Written by dangilokesh24353

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