हम आखिरी पीढ़ी हैं"
हम वो आखिरी पीढ़ी हैं,
जिसने बैलगाड़ी से आसमान तक उड़ान देखी,
ख़तों की खुशबू में मोहब्बत लिखी,
अब बस एक क्लिक में पूरी दुनिया तक पहुंचा दिया।
हमने मिट्टी के घरों में कहानियाँ सुनीं,
जमीन पर बैठकर रोटी खाई,
चाय की चुस्की प्लेट से ली,
सादगी में खुशियाँ पाई।
हम वो आखिरी लोग हैं,
जो मोहल्ले के बुजुर्गों को देखकर डरते थे,
नुक्कड़ से भागकर घर आ जाते थे,
पर उनका सम्मान दिल से करते थे।
चिमनी की धीमी रौशनी में किताबें पढ़ी,
लालटेन की लौ में अपने सपने देखे,
चादर के भीतर नावेल छिपाई,
स्याही से कागज़, कपड़े और हाथ रंगे।
हम वो लोग हैं,
जिन्होंने खतों में अपनी भावनाएं लिखी,
उनका इंतजार करते हुए वक्त बिताया,
और जवाब आने पर खुशी से झूम उठे।
कूलर, एसी के बिना बचपन बिताया,
सरसों का तेल बालों में लगाकर स्कूल गए,
साधारण कपड़ों में शादी-ब्याह में शामिल हुए,
पर खुशियों में कोई कमी महसूस नहीं की।
हमने गोदरेज की गोल डिब्बी से शेव बनाई,
गुड़ की चाय और काले दंत मंजन का स्वाद चखा,
रेडियो पर बीबीसी की खबरें सुनीं,
विविध भारती और बिनाका गीत माला का मज़ा लिया।
हम वो आखिरी पीढ़ी हैं,
जिसने हर बदलाव को अपनी आँखों से देखा,
बचपन से लेकर जवानी तक,
दुनिया को बदलते हुए महसूस किया।
अब न जाने वो दिन फिर कब आएंगे,
पर हमारी यादों में वो दौर अमर रहेगा,
हम वो आखिरी पीढ़ी हैं,
जिसने पुराने जमाने की हर बात को जिया है।
और ज्यादा पड़े कविताए ,मैं रहूँ ना रहूँ, मेरी यादें रहें
लेखक सम्पादत साप्ताहिक समाचार थीम