पूछा एक मां से कि क्यों नन्हे पैरों को तकलीफ दे रहे हो, क्यू इन नन्हे हाथों को काम की बेड़ियों में बांध रहे हो ,
वह कहती मजबूरी है साहब , नहीं रहे वह जो इस काम के हकदार थे,
कई दिलासे दिए प्रशासन ने की सहायता करेंगे हमारी, मुश्किलें हमारी हल कर देंगे सारी,
मगर ना था कोई चुनाव थी देश बंदी, इसलिए मुकर गए वह अपनी बातों से इतनी जल्दी,
कई मील चले वह रोज सहायता की उम्मीद लेकर, कई फरिश्ते मिले उन्हें और कई चले गए उन्हें लूट कर,
मंजिल कहां तक थी मालूम नहीं था बस चलते जाना था, आखिर उन्हें अपना परिवार बचाना था,
कई पहुंच गए अपने आशियाने और कई रह गए बहुत दूर यूं ही असहाय और मजबूर।
An aspirant making effort to project various dimensions of society through 📝
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