रामायण के तृतय (त्रिमुर्ति) को जानिए।

रामायण के तृतय (त्रिमुर्ति) को जानिए।

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22 Jun '24
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हम रामायण को अनेक प्रकार के संदर्भ में जानते आए है इसी कड़ी में हम इसकी त्रिमुर्ति के बारे में इस लेखनी में जाानेंगे।

अयोध्या से मिथिला, किष्किंधा और लंका तक राम के अयन को आगे बढ़ाने में रामायण के तीन प्रमुख पात्रों ने महत्वपूर्ण योगदान किया है। वे हैं:- विश्वामित्र, लक्ष्मण और हनुमान ।

राम की अंतर्निहित दिव्यता को आविष्कृत कर मानव-कल्याण के लिए विश्व में उसको संप्रसारित करने का श्रेय विश्वामित्र को ही मिलता है। 

एक समय था जब विश्वामित्र तपोनिष्ठा में वशिष्ठ के प्रतिद्वंद्वी थे। परंतु राम को अपने साथ भेजने मे संकोच करनेवाले दशरथ को इसमें निहित लोकहित की भावना के संबंध में आश्वस्त करने के लिए विश्वामित्र ने ब्रह्मर्षि वशिष्ठ की स‌द्भावना और साधु सम्मति का ही आश्रय लिया है।

 आतंकवादी राक्षसों से अपने यज्ञ की रक्षा कराने में विश्वामित्र ने राम का सहयोग केवल दस दिन के लिए मांगा था, पर उनकी यात्रा की अवधि को चौदह दिन और बढ़ाकर जानकी से दाशरथी का विवाह भी कराया। स्थूल दृष्टि से देखने पर ऐसा लगता है कि ताड़का के संहार से लेकर अयोध्या के चारों राजकुमारों का पाणिग्रहण मिथिला की चार समानुराग राजकुमारियों के साथ संपन्न कराने तक की सारी घटनाएँ यों ही अपने आप घटित हुई हैं। परंतु ध्यान से देखने पर पता चलता है कि इन सभी गतिविधियों के पीछे कोई दैवी वरदहस्त काम कर रहा है जिसको विश्वामित्र के ऋषि मानस ने परिकल्पित और आयोजित किया है। विश्वामित्र तो तपस्या के तापस रूप थे ।

 अहल्या का शाप-विमोचन भी पहले से परिकल्पित योजना है जैसा कि मिथिला में शतानंद और विश्वामित्र के संवाद से स्पष्ट होता है। राम को आगे चलकर जो महान् कार्य करने हैं, उनके लिए आवश्यक सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परिसंपदा प्रदान करने के लिए ही विश्वामित्र इस पूर्वरंग का आयोजन करते हैं ताकि अयोध्या लौटने तक उनको इतनी साधन-संपत्ति स्वाधीन रहे जो दंडक और लंका में घटित होनेवाले विशिष्ट कार्यक्रम में काम आ सके।

यहाँ पर वाल्मीकि के अध्येता को दो बारीक बातों पर ध्यान देना है। पहली बात यह है कि विश्वामित्र ने अपनी कार्य-सिद्धि के लिए केवल राम का ही सहयोग मांगा था, पर उनके पिता दशरथ उनके भाई लक्ष्मण को भी साथ में भेज देते हैं और विश्वामित्र इस अतिरिक्त सहयोग को सुखद मौन भाव से स्वीकार करते हैं। 

दूसरी बात यह है कि सीता के साथ राम का विवाह संपन्न होते ही वे अपने निवास लौट जाते हैं। इस प्रकार अयोध्या से मिथिला और मिथिला से अयोध्या की दोनों यात्राओं में तीन यात्रियों का त्रितय बराबर बना रहता है। विश्वामित्र, राम और लक्ष्मण की त्रयी मिथिला पहुँचती है तो सीता, राम और लक्ष्मण की एक नई त्रयी अयोध्या में प्रवेश करती है। इस प्रकार राम के संपूर्ण अयन में-जिसको वाल्मीकि 'रामायण' की संज्ञा देते हैं-अंतिम विजय और सीता की पुनः प्राप्ति तक त्रितय का यह समाहार किसी न किसी रूप में बराबर बना रहता है। इस सार्वत्रिक त्रिक, त्रितय या तीन मूर्ति की परिकल्पना की ओर वाल्मीकि एक हल्का-सा इशारा देते हैं जब वे राम और लक्ष्मण को साथ लेकर चलनेवाले विश्वामित्र के पीछे उसी तरह जा रहे थे, जैसे ब्रह्माजी के पीछे दोनों अश्विनी कुमार चलते हैं और तीन-तीन फनवाले दो सर्पों के समान दिख रहे थे।

मिथिला जाने के रास्ते में राम को तीन विभिन्न प्रकृतियों की नारियां दिखाई देती है। इनमें से पहली है ताटका जो कि तमो गुण की आसुरी मूर्ति है और जिसका राम ने संहार कर जन-कल्याण किया है।

 दूसरी है अहल्या जो रजोगुण की भस्मराशि बन कर शाप से मुक्त होने के लिए तप रही थी जिसका राम ने उद्धार किया और उनके दांपत्य जीवन को पुनर्वासित किया।

 तीसरी है सीता-सौंदर्य, वैभव और सश्रीकता की प्रतिमूर्ति जिसको राम ने अपनाया और हृदय से हृदय का स्वागत किया और सौभाग्य का सम्मान दिया। यह भी एक त्रयी है।

दशरथ की तीन रानियां भी त्रयी का एक और समाहार बना लेती हैं। वाल्मीकि इन तीनों को ह्री, श्री और कीर्ति के सांकेतिक प्रतीक बनाते हैं। तीनो में सर्वाधिक संस्कार संपन्न कौसल्या को बीजाक्षर ही से मिलाया गया है और ललित भाषिणी लक्ष्मण माता को 'श्री' की प्रतिकृति के रूप में प्रस्तुत किया गया। मित भाषिणी, मृदु भाषिणी, कोमल और निर्मल हृदय, आचरण में निःस्वार्थ और परहित की भावना और जो कुछ अच्छा है, हितकारी है और कल्याणकारक है उसका संवर्धन करने में सहयोग देनेवाली सुमित्रा वास्तव में तीनों रानियों की संधायिका है।

 उनके दोनों पुत्र लक्ष्मण और शत्रुघ्न-समर्पित मन से राम और भरत की सेवा में लगे रहते हैं। वह कैकेयी के विरूद्ध कभी एक शब्द भी नहीं कहती जबकि वसिष्ठ जैसे ब्रह्मर्षि तक सब के सामने उन की निंदा करते हैं। राम और सीता के साथ वह अपने पुत्र लक्ष्मण को वनवास के लिए भेजते समय हृदयपूर्वक आशीर्वाद देती है। उनकी मंत्रपूरित मंगलकामना है 

आपको इस कथानक का पहला भाग केसा लगा feedback जरूर देवे, जल्द ही इसका अगला भाग प्रस्तुत करेंगे।

Category:History



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Written by Govind Gurjar

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