जानिए, हिंदी की वैश्विक स्थिति ! अर्श पर या फर्श पर?

तथ्यों को जानकर हो जाएंगे हैरान !



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आज हिन्दी न केवल हिन्दुस्तान के दिल की भाषा हैबल्कि विश्व के कोने-कोने में यह रचती बसती है। वर्तमान काल में विश्‍व में लगभग साठ हजार भाषाएं किसी न किसी रूप में अस्तित्‍व में हैं। इनमें से आधे से अधिक भाषाओं का अस्तित्व खतरे में है। लेकिन, हिन्‍दी इस मामले में एक अलग ही मुकाम पर है। भाषाओं के इस विकट दौर में हिन्‍दी न केवल अपने अस्तित्‍व को बचाने में पूर्ण रूप से सफल रही है, अपितु विश्‍व में अपनी बुलन्‍दी का झंडा पूरी शान से फहरा रही है। आंकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो विश्व में सर्वाधिक बोलने वाली भाषा चीनी हैउसके बाद हिन्दी ने अपना गौरवमयी स्थान बनाया है। अंग्रेजी तीसरे स्थान पर है। भूमण्डलीकरण ने हिन्दी की उपयोगिता को अच्छा खासा बढ़ाया है। हिन्‍दी भाषा का वैश्विक स्‍तर पर उल्‍लेखनीय विस्‍तार हो चुका है। हिन्‍दी का प्रयोग भारत के अलावा नेपाल, भूटान, बांग्‍लादेश, मालदीव, म्‍यामार, रूस, चीन, मंगोलिया, कोरिया, थाईलैंड, इंडोनेशिया, मलेशिया, जापान, फीजी, मॉरीशस, पाकिस्‍तान, संयुक्‍त राज्‍य अमेरिका, केन्‍या, जर्मनी, दुबई, ओमान, आस्‍ट्रेलिया, मलेशिया, सिंगापुर, हांगकांग, इंग्‍लैंड, सूरीनाम, श्रीलंका, गुयाना, त्रिनीदाद, टोबैगो, कनाडा, अफगानिस्‍तान, कतर, मिश्र, उजबेकिस्‍तान, तंजानिया आदि देशों में हिन्‍दी बोलने और समझने वाले लोग प्रचुर संख्‍या में हैं। 

 

अंतराष्‍ट्रीय फलक पर हिन्‍दी !

वर्ष 1977 में विदेश मंत्री के रूप में श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ में हिन्‍दी में भाषण देकर वैश्विक स्‍तर पर हिन्‍दी के लिए एक नया मार्ग प्रशस्‍त किया। भूतप इसके बाद हिन्‍दी अंतराष्‍ट्रीय फलक पर तेजी से अग्रसित होती चली गई। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के नेतृत्‍व में हिन्‍दी वैश्विक स्‍तर पर काफी तेजी से अग्रसित हो रही है। आज हिन्‍दी की वैश्विक व्‍यापकता का अंदाजा इसी तथ्‍य से लगाया जा सकता है कि विश्‍व के 200 से अधिक देशों में हिन्‍दी भाषा ने अपनी पकड़ मजबूत की है। केवल इतना ही नहीं, आज दुनिया के 150 से अधिक देशों के 600 से अधिक विश्‍विविद्यालयों एवं शिक्षण संस्‍थाओं में हिन्‍दी में शिक्षण एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों का संचालन किया जा रहा है। संविधान सभा ने 14 सितम्‍बर, 1949 को हिन्‍दी को राजभाषा के रूप में अंगीकार किया। इसलिए, देश में प्रतिवर्ष 14 सितम्‍बर को हिन्‍दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस समय विश्‍व के 180 से अधिक देशों में प्रतिवर्ष 10 जनवरी को ‘विश्‍व हिन्‍दी दिवस’ मनाया जाने लगा है। हिन्‍दी में ‘वसुधैव कुटुम्‍बकम’ की प्रवृति समाहित है। हिन्‍दी में आर्य, द्रविड़, अंग्रेजी, संस्‍कृत, अरबी, उर्दू, फारसी, चीनी, जापानी, स्‍पेनी, फ्रेंच, जर्मन, पुर्तगाली आदि वैश्विक भाषाओं के शब्‍द सहज प्रयोग होते हैं। हिन्‍दी एक उदार भाषा का जीवंत उदाहरण है।

भूमण्डलीकरण और हिन्दी !

आंकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो विश्व में सर्वाधिक बोलने वाली भाषा चीनी हैउसके बाद हिन्दी ने अपना गौरवमयी स्थान बनाया है। अंग्रेजी तीसरे स्थान पर है। भूमण्डलीकरण ने हिन्दी की उपयोगिता को अच्छा खासा बढ़ाया है। भूमण्डलीकरण युग में बाजारीकरण हुआ है। बाजार में उपभोक्ताओं तक उत्पादों की अधिक और सहज पहुंच सुनिश्चित करने के लिए आम आदमी की सम्पर्क भाषा का चुनाव किया जाता है। इस मामले में हिन्दी ने बाजी मारी है। एक अनुमान के अनुसार आज वैश्विक बाजार में हिन्दी भाषा के विज्ञापनों वाले उत्पाद अंग्रेजी भाषा वाले विज्ञापनों से दस फीसदी से अधिक कमाई कर रहे हैं। हिन्दी भाषी चैनलों के दर्शकों की संख्या अन्य भाषा के चैनलों से कई गुणा अधिक आंकी गई है। देश में इलैक्ट्रोनिक मीडिया हो या प्रिन्ट मीडियादोनों में हिन्दी का प्रभुत्व देखा जा सकता है। देश में सर्वाधिक समाचार पत्र एवं पाठक हिन्दी के ही हैं।

हिन्दी की पहुंच आम आदमी के दिल तक !

देश में हिन्दी की सर्वव्यापकता जगजाहिर ही है। पूर्वीपश्चिमीउत्तरी अथवा दक्षिणी भारतीय चाहे कोई भी अपनी मातृभाषा बोलते होंलेकिन सभी हिन्दी भाषा में जरूर संवाद कर लेते हैं। हिन्दी आम आदमी की भाषा है। इस तथ्य को कोई भी नहीं नकार सकता है। वास्तव में हिन्दी को एक रिक्शावाले से लेकरदुकानदारमजदूरकिसान तक सहज समझ लेता है। असल में इसी आम तबके ने हिन्दी को सरताज बनाने का सौभाग्य प्रदान किया है। हिन्दी की पहुंच आम आदमी के घर तक ही नहींबल्कि उसके दिल तक पहुंचती है। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान जन-जन में स्वतंत्रता प्राप्ति का जज़्बा भरने के लिए सभी क्रांतिकारियों ने हिन्दी भाषा को अपने अभियान का अभिन्न अंग बनाया था। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान जितने भी समारोहप्रचार-प्रसार अभियान आदि आयोजित हुएसभी में हिन्दी भाषा को प्रमुख रूप से प्रयोग किया जाता था। यहाँ तक कि उस दौरान प्रचार-प्रसार के लिए छपने वाले समाचार पत्रपत्रिकाएं एवं परचे भी हिन्दी भाषा में ही होते थे। स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले का दौर रहा हो या फिर स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद का समयहमारे राष्ट्रीय नेताओं को अपने आचार-विचार जनता तक पहुंचाने के लिए हिन्दी को अपनी संवाद भाषा बनाना पड़ा। हिन्दीतर क्षेत्रों के होने के बावजूद राष्ट्रपिता महात्मा गाँधीस्वामी दयानंदरविन्द्र नाथ ठाकुरबाल गंगाधर तिलकराजगोपालाचार्य जैसे अनेक महान् लोगों ने आम आदमी तक अपने विचार पहुंचाने के लिए हिन्दी को ही अपनाया।

इंटरनेट की दुनिया में हिन्दी का रूतबा ! 

अब इंटरनेट की दुनिया में भी हिन्दी का रूतबा बढ़ा है। आईएएस के स्तर पर भी हिन्दी का आधार मजबूत हुआ है। आईआईटी के शिक्षार्थियों का भी हिन्दी के प्रति पहले से कहीं अधिक रूझान बढ़ा है। पहले आईआईटी करने का माध्यम अंग्रेजी थालेकिन ग्रामीण बच्चों की बढ़ती भागीदारी को देखते हुएअब अंग्रेजी के साथ हिन्दी को भी आईआईटी करने का माध्यम बना दिया गया है। वेबसाईटब्लॉगऐप आदि भी हिन्दी में संचालित होने लगे हैं। हिन्दी रोजगार के क्षेत्र में भी आगे बढ़ी है। तकनीकी एवं वैज्ञानिक ज्ञान-विज्ञान की पुस्तकों में हिन्दी ने अंगे्रजी के एकाधिकार को कड़ी चुनौती देना शुरू कर दिया है। कुल मिलाकर अब हिन्दी असीमित हो गई हैउसकी अपनी कोई सीमा नहीं रह गई है। हर वर्गहर क्षेत्रहर देश और हर स्तर पर हिन्दी की बेहतरीन उपस्थिति सहज देखी जाने लगी है। अब हिन्दी पर केवल हिन्दुस्तान का हक नहीं रह गया हैअब यह वैश्विक भाषा बन गई है। इस तथ्य को इंग्लैण्ड के प्रोफेसर की यह अभिव्यक्ति बखूबी सिद्ध करती है, ‘‘हिन्दी जिन्दगी का हिस्सा है। हिन्दी जिन्दा है। हिन्दी किसी एक वर्ग या वर्ण या जाति या धर्म या मजहब या मार्ग या देश या संस्कृति की नहीं है। हिन्दी भारत की है। मॉरीशस की है। इंग्लैण्ड की है। सारी दुनिया की है। हिन्दी आपकी है। हिन्दी मेरी है।’’

देशों को जोडऩे का काम कर रही है हिन्दी !

हिन्दी विदेश में प्रवासी भारतीयों के लिए सम्पर्क भाषा तो है हीसाथ ही वहां के अन्य लोगों के लिए भी रूचिकर भाषा हो गई है। देश में हिन्दी की सर्वव्यापकता जगजाहिर ही है। पूर्वीपश्चिमीउत्तरी अथवा दक्षिणी भारतीय चाहे कोई भी अपनी मातृभाषा बोलते होंलेकिन सभी हिन्दी भाषा में जरूर संवाद कर लेते हैं। एक तरह से हिन्दी भाषा पहले दिलों को जोड़ती रही है और अब देशों को जोडऩे का काम कर रही है।

सम्पर्क भाषा के रूप में हिंदी !

भूमण्डलीकरण युग में बाजारीकरण हुआ है। बाजार में उपभोक्ताओं तक उत्पादों की अधिक और सहज पहुंच सुनिश्चित करने के लिए आम आदमी की सम्पर्क भाषा का चुनाव किया जाता है। इस मामले में हिन्दी ने बाजी मारी है। एक अनुमान के अनुसार आज वैश्विक बाजार में हिन्दी भाषा के विज्ञापनों वाले उत्पाद अंग्रेजी भाषा वाले विज्ञापनों से दस फीसदी से अधिक कमाई कर रहे हैं। हिन्दी भाषी चैनलों के दर्शकों की संख्या अन्य भाषा के चैनलों से कई गुणा अधिक आंकी गई है। देश में इलैक्ट्रोनिक मीडिया हो या प्रिन्ट मीडिया अथवा सोशल मीडियाहर जगह हिन्दी का प्रभुत्व देखा जा सकता है। देश में सर्वाधिक समाचार पत्र एवं पाठक हिन्दी के ही हैं। अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर भी हिन्‍दी के समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं एवं अन्‍य प्रकाशन भी हिन्‍दी को वैश्विक स्‍वरूप प्रदान करने में अहम भूमिका अदा कर रहे हैं। 

तकनीकी स्‍तर पर हिन्‍दी की प्रगति !

तकनीकी स्‍तर पर भी हिन्‍दी ने उल्‍लेखनीय प्रगति की है। इंटरनेट पर भी हिन्‍दी ने अपना प्रमुख स्‍थान स्‍थापित कर लिया है। हिन्‍दी साहित्‍य और शोध सामग्री इंटरनेट पर बड़ी तेजी से बढ़ी है। अब इंटरनेट की दुनिया में भी हिन्दी का रूतबा बढ़ा है। एक अनुमान के अनुसार भारत में इंटरनेट का प्रयोग 70 करोड़ से अधिक लोग करते हैं, जिनकी संख्‍या वर्ष 2025 तक 95 करोड को पार कर जाएगी। गूगल ने भी यह स्‍वीकार किया है कि हिन्‍दी में इंटरनेट का इस्‍तेमाल करने वालों की संख्‍या अंग्रेजी में इंटरनेट का इस्‍तेमाल करने वालों से अधिक हो जाएगी। गूगल के आंकड़ों के अनुसार हिन्‍दी में डिजीटल सामग्री पढ़ने वाले लोगों की संख्‍या में प्रतिवर्ष 94 प्रतिशत की दर से बढ़ौतरी हो रही है। गूगल का गूगल असिस्‍टेंट, अमेजन का अलेक्‍सा, माइक्रोसॉफ्ट की कोर्टाना, एप्‍पल की सीरी आदि सभी आभासी सहायक हिन्‍दी को वैश्विक स्‍तर पर एक नया आयाम दे रहे हैं। प्रत्‍यक्ष को प्रमाण की आवश्‍यकता नहीं होती है। 

हिन्‍दी में बढ़ती डिजीटल सुविधाएं !

       गूगल ने वर्ष 2018 में गूगल असिस्‍टेंट में हिन्‍दी भाषा के उपयोग की शुरूआत की थी। लेकिन मात्र दो वर्षों में ही इसके हिन्‍दी उपयोगकर्ताओं की संख्‍या अंग्रेजी के बाद दूसरे स्‍थान पर पहुंच गई थी। गूगल, माईक्रोसॉफ्ट, आइबीएम, ओरेकल जैसी बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों ने हिन्‍दी में अपनी डिजीटल सुविधाओं सुसज्जित करने और हिन्‍दी में उपयोगी उपयोगी सामग्री प्रस्‍तुत करके हिन्‍दी को एक नई दिशा प्रदान की है। हिन्‍दी टूल्‍स जैसे कि यूनिकोड फोंट, यनिकोड हिन्‍दी की-बोर्ड, हिन्‍दी ऐप ‘लीला’, कंप्‍यूटर सॉफ्टवेयर स्‍वदेशी टूल ‘कंठस्‍थ’, गुगल वॉइस टाइपिंग, मशीन अनुवाद (मंत्र) राजभाषा, गुगल अनुवाद, ई-महाशब्‍दकोश मोबाइल ऐप, ई-सरल हिन्‍दी वाक्‍यकोश मोबाईल ऐप आदि ने हिन्‍दी लेखन एवं टंकन को सहज, सरल और सुबोध बना दिया है। 

सोशल मीडिया पर हिंदी का बज रहा डंका ! 

       टीवी चैनलों, वेब, सोशल मीडिया वाट्सअप, फेसबुक, इंस्‍टाग्राम, ब्‍लॉग, ट्विटर, यूट्यूब आदि पर हिन्‍दी का डंका बज रहा है। बड़ी बड़ी कंपनियों की वेबसाईटब्लॉगऐप आदि भी हिन्दी में संचालित होने लगे हैं। ओटीटी के माध्‍यमों में नेटफ्लिक्‍स, प्राइम विडियो, हॉट स्‍टार, अमेजन जैसे प्‍लेटफॉर्म पर हिन्‍दी अपना परचम लहरा रही है। देश के न्‍यायालयों से लेकर आर्थिक प्रतिष्‍ठनों तक में अंग्रेजी के साथ साथ हिन्‍दी का प्रयोग भी होने लगा है और सभी दस्‍तावेज द्विभाषी रूप में तैयार किए जाने लगे हैं। आईएएस के स्तर पर भी हिन्दी का आधार मजबूत हुआ है। आईआईटी के शिक्षार्थियों का भी हिन्दी के प्रति पहले से कहीं अधिक रूझान बढ़ा है। पहले आईआईटी करने का माध्यम अंग्रेजी थालेकिन ग्रामीण बच्चों की बढ़ती भागीदारी को देखते हुएअब अंग्रेजी के साथ हिन्दी को भी आईआईटी करने का माध्यम बना दिया गया है।

वैश्विक भाषा बन रही है हिन्‍दी ! 

       तकनीकी एवं वैज्ञानिक ज्ञान-विज्ञान की पुस्तकों में हिन्दी ने अंगे्रजी के एकाधिकार को कड़ी चुनौती देना शुरू कर दिया है। कुल मिलाकर अब हिन्दी असीमित हो गई हैउसकी अपनी कोई सीमा नहीं रह गई है। हर वर्गहर क्षेत्रहर देश और हर स्तर पर हिन्दी की बेहतरीन उपस्थिति सहज देखी जाने लगी है। अब हिन्दी पर केवल हिन्दुस्तान का हक नहीं रह गया हैअब यह वैश्विक भाषा बन गई है। इस तथ्य को इंग्लैण्ड के प्रोफेसर की यह अभिव्यक्ति बखूबी सिद्ध करती है, “हिन्दी जिन्दगी का हिस्सा है। हिन्दी जिन्दा है। हिन्दी किसी एक वर्ग या वर्ण या जाति या धर्म या मजहब या मार्ग या देश या संस्कृति की नहीं है। हिन्दी भारत की है। मॉरीशस की है। इंग्लैण्ड की है। सारी दुनिया की है। हिन्दी आपकी है। हिन्दी मेरी है।”

रोजगार के क्षेत्र में हिन्‍दी !

हिन्दी रोजगार के क्षेत्र में भी आगे बढ़ी है। हिन्‍दी के बढ़ते वैश्विक रूप से प्रभावित होकर विश्‍व की अनेक बहुराष्‍ट्रीय कंपनियां, वैश्विक संगठन, विभिन्‍न देशों के दूतावास और उपक्रम अपनी वेबसाइट को हिन्‍दी में भी तैयार करवाने लगे हैं। अन्य देश लाखों रूपये मासिक वेतन पर भारत से बुलाकर हिन्दी अध्यापकों एवं प्राध्यापकों की नियुक्ति कर रहे हैं। जानकारों के मुताबिक विदेशों में हिन्दी सिखाने वाले अध्यापकों की भारी कमी हो गई है। पहले हिन्दी में रोजगार की न्यून संभावनाओं का रोना रोया जाता था। लेकिन आज हिन्दी रोजगारप्रद भाषा बन चुकी है। विदेशों में हिन्दी में शिक्षित लोगों को विशेष तौरपर भर्ती किया जाने लगा है। पौलेण्ड जैसे देशों में तो हिन्दी में पारंगत लोगों को पर्यटनअनुवादपुस्तकालयोंसंग्रहालयों आदि लगभग हर क्षेत्र में भर्ती किया जा रहा है। लगभग हर देश में हिन्दी के क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावनाओं के द्वार खुल गए हैं। इन्हीं सब तथ्यों से सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि हिन्दी भविष्य में कितने बड़े स्तर पर पहुंचने जा रही है।

विदेशों में हिन्दी हिन्दुस्तान का प्रतीक !

विदेशों में हिन्दी को हिन्दुस्तान का प्रतीक माना जाता है। ज्यों-ज्यों हिन्दुस्तान विकसित देशों की श्रेणी में शामिल होने व एक महाशक्ति बनने की तरफ अग्रसित हुआ हैत्यों-त्यों हिन्दी को अधिक महत्व मिला है। आज हिन्दी धीरे-धीरे अपनी सभी कमजोरियों के मकडज़ाल से बड़ी तेजी से निकलती चली जा रही है। हिन्दी वैश्विक स्तर पर बाजार की भाषा बन गई है। व्यवसायिक क्षेत्रों में भी हिन्दी को बखूबी सम्मान मिलने लगा है। विदेशों में तो हिन्दी के प्रति अप्रत्याशित रूप से रूझान बढ़ा है। अमेरिका जैसे देश हिन्दी शिक्षण-प्रशिक्षण पर लाखों-करोड़ों डॉलर खर्च कर रहा है। एक सामान्य अनुमान के अनुसार अकेले अमेरिका में दो सौ से अधिक स्कूलों में हजारों विद्यार्थी हिन्दी सीख रहे हैं। अन्य देशों में भी इसी तरह का सुखद नजारा देखने को मिल रहा है। 

 (लेखक स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक हैं।)

राजेश कश्यप

स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक

म.नं. 1229, पाना नं. 8, नजदीक शिव मन्दिर,

गाँव टिटौली, जिला. रोहतक

हरियाणा-124001
मोबाईल. नं. 09416629889

email: [email protected] 

लेखक परिचय : हिंदी और जनसंचार में द्वय स्‍नातकोत्‍तर। गत अढ़ाई दशक से समाजसेवा एवं प्रिन्‍ट एवं इलेक्‍ट्रोनिक मीडिया के लिए स्‍वतंत्र लेखन जारी। प्रतिष्ठित राष्‍ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में तीन हजार से अधिक लेख एवं फीचर प्रकाशित। ब्‍लॉगर एवं स्‍तम्‍भकार। लगभग एक दर्जन पुस्‍तकों का लेखन एवं सहलेखन। दो दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित सम्‍मान एवं पुरस्‍कारों से अलंकृत। 

Category:Education



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Written by राजेश कश्‍यप

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वरिष्‍ठ पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक (स्‍वतंत्र)