खीर की प्रसादी

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10 Jun '24
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*🙏🙏खीर की प्रसादी🙏🙏* 
🕉️१०.०६.२०२४🕉️
बरसाना में श्री रूप गोस्वामी चैतन्य महाप्रभु के छः शिष्यों में से एक थे। एक बार भ्रमण करते-करते अपने शिष्य जीव गोस्वामी जी के यहाँ बरसाना आए। 
         जीव गोस्वामी जी ठहरे फक्कड़ साधू। फक्कड़ साधू को जो मिल जाये वो ही खा लें जो मिल जाये वो ही पी लें। आज उनके गुरु आए तो उनके मन भाव आया की मैं रोज सूखी रोटी, पानी में भिगो कर खा लेता हूँ। मेरे गुरु आये हैं उन्हें क्या खिलाऊँ ?
         एक बार अपनी कुटिया में देखा किंचित तीन दिन पुरानी रोटी बिल्कुल कठोर हो चुकी थी। मैं साधू तो पानी में गला-गला खा लूँ। यद्यपि मेरे गुरु साधुता की परम स्थिति को प्राप्त कर चुके है फिर भी मेरे मन में आनन्द कैसे हो। कैसे मेरा मन संतुष्ट होगा।
         एक क्षण के भक्त के मन में संकल्प आया कि अगर समय होता तो किसी बृजवासी के घर चला जाता। दूध मांग लेता, चावल मांग लाता। मेरे गुरु पधारे जो देह के सम्बंध में मेरे चाचा भी लगते हैं। लेकिन भाव साम्राज्य में प्रवेश कराने वाले मेरे गुरु भी तो हैं। उनको खीर ही बनाकर खिला देता। 
         रूपगोस्वामी ने आकर कहा जीव भूख लगी है तो जीव गोस्वामी उन सूखी रोटियों को अपने गुरु को दे रहा है। अँधेरा हो रहा है। जीव गोस्वामी की आँखों में अश्रु आ रहे हैं, और रूपगोस्वामी जी ने कहा तू क्यों रो रहा है हम तो साधू हैं ना। जो मिल जाय वही खा लेते हैं। मैं सूखी रोटियाँ भी खा लूँगा।
         जीव ने कहा, नहीं बाबा मेरा मन नहीं मान रहा। आप की यदि कोई पूर्व सूचना होती तो जो मेरे मन में वह प्रसादी तैयार कर लेता। 
         यह चर्चा हो ही रही थी की कोई अर्द्धरात्रि में दरवाजा खटखटाता है। ज्यों ही दरवाजा खटखटाया गया त्यों ही जीव गोस्वामी जी ने दरवाजा खोला तो देखा, एक किशोरी खड़ी हुई है 8-10 वर्ष की, हाथ में कटोरा है।
         किशोरी ने कहा, 'बाबा मेरी माँ ने खीर बनाई है और कहा जाओ बाबा को दे आओ।' जीव गोस्वामी ने उस खीर के कटोरे को ले जाकर रूपगोस्वामी जी के पास रख दिया। बोले, 'बाबा पाओ।'
         जैसे ही रूपगोस्वामी जी ने उस खीर को स्पर्श किया उनका हाथ काँपने लगा। जब जीव गोस्वामी ने देखा बाबा का हाथ कांप रहा है तो पूछा, 'बाबा कोई अपराध बन गया है।'
         रूपगोस्वामी जी ने पूछा, 'जीव आधी रात को यह खीर कौन लाया ?'
         'बाबा पड़ोस में एक कन्या है मैं जानता हूँ उसे। वो लेकर आई है' जीव गोस्वामी बोले
         रूपगोस्वामी बोले, 'नहीं जीव इस खीर को मैने जैसे ही चख के देखा मेरे शरीर में रोमांच हो आया। जीव तू पता कर यह कन्या मुझे मेरे किशोरी जी के होने अहसास दिला रही है।'
         नहीं बाबा वह कन्या पास की है, मैं जानता हूँ उसको' जीव ने उत्तर दिया।
         रूपगोस्वामी नहीं माने तो, अर्ध रात्रि में दोनों गए उसके घर और दरवाजा खटखटाया। अन्दर से उस कन्या की माँ निकल कर बाहर आई। 
         जीव गोस्वामी जी ने पूछा, 'आपको कष्ट दिया, परन्तु आपकी लड़की कहाँ है ?'
         उस महिला ने कहा, :क्या बात हो गई बाबा ?'
         'आपकी लड़की है कहाँ ?' जीव गोस्वामी ने अपना प्रश्न दोहराया।
         'वो तो अपनी ननिहाल गई है गोवेर्धन, 15 दिन हो गए हैं।' महिला ने बताया। इतना सुनते ही रूपगोस्वामी जी को मूर्च्छा आ गयी।
         जीव गोस्वामी जी ने रूपगोस्वामी जी को सहारा दिया और उनके कहने पर उन्हें लेकर श्रीजी के मन्दिर की सीढ़ियाँ चढ़ने लगे। जैसे एक क्षण में चढ़ जायें। लंबे-लंबे पग भरते हुए मन्दिर पहुँचे।
         वहाँ जाकर जीव गोस्वामी जी ने गोसांईजी से पूछा, 'बाबा एक बात बताओ आज क्या भोग लगाया था श्रीजी श्यामा प्यारी को?'
         गोसांई जी जानते थे श्री जीव गोस्वामी को। बोले, 'क्या बात हो गई बाबा ?'
         जीव गोस्वामी जी ने फिर कहा, 'क्या भोग लगाया था ?
         गोसांई जी ने कहा, 'आज श्रीजी को खीर का भोग लगाया था।'
         इतना सुनते ही रूप गोस्वामी तो 'श्री राधे श्री राधे' कहने लगे। उन्होंने गोसांई जी से कहा, 'बाबा एक निवेदन और है आप से, यद्यपि यह मन्दिर की परम्परा के विरुद्ध है कि एक बार जब श्री जी को शयन करा दिया जाये तो उनकी लीला में जाना अपराध है। प्रिया प्रियतम जब विराज रहे हों तो नित्य लीला है उनकी। 
         अपराध है फिर भी आप एक बार यह बता दीजिये कि, जिस पात्र में भोग लगाया था वह पात्र रखो है के नहीं रखो है ?'
         गोसांई जी मन्दिर के पट खोलते हैं और देखते हैं की वह पात्र नहीं है वहाँ पर।
         गोसांई जी बाहर आते हैं और कहते हैं बाबा वह पात्र नहीं है वहाँ पर ! न जाने का बात है गई है ?
         रूप गोस्वामी जी ने अपना दुपट्टा हटाया और वह चाँदी का पात्र दिखाया, 'बाबा यह पात्र तो नहीं है ?'
         गोसांई जी ने कहा, 'हाँ बाबा! यही पात्र तो है।'
         रूप गोस्वामी जी ने कहा, 'श्री राधारानी 300 सीढ़ी उतरकर मुझे खीर खिलाने आई!!, किशोरी पधारी थी!!!, राधारानी आई थी!!!!'
         उस खीर को उन्होंने मुख पर रगड़ लिया, सब साधु संतो को बांटते हुए 'श्रीराधे श्रीराधे' करते हुऐ फिर कई वर्षो तक श्री रूप गोस्वामी जी बरसाना में ही रहे।
🙏🙏जय श्री लाड़ली राधा रानी की🙏🙏                  
🙏🙏  जय श्री राधे कृष्ण🙏🙏

Category:Stories



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Written by VIVEK SAXENA