कारगिल विजय दिवस (कविता )

जून की तपती धूप थी, जब दुश्मन ने खेला अपना रूप था।

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26 Jul '24
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 कारगिल विजय दिवस (कविता )

रघुवीर सिंह पंवार 

वो जून की तपती धूप थी, जब दुश्मन ने खेला अपना रूप था। बर्फीले पहाड़ों पर छिप कर, वो आया था छल करने का शूर था।

भारत की सीमा पर बुरी नजर, दिखाई उसने अपनी कुटिल नजर। हमारे वीर जवान थे तैयार, हर चुनौती के लिए, हर बार।

तब शुरू हुई थी कारगिल की लड़ाई, भारत माता की शान की थी बड़ाई। देश के वीरों ने बढ़कर दिखाया, दुश्मन को हराया, उसे भगाया।

रात के अंधेरे में बढ़ते थे वो, अपने प्राणों की आहुति देते थे वो। बर्फ की ठंड, गोलियों की बारिश, पर हिम्मत नहीं हारी, नहीं किया कोई तकरार।

कप्तान विक्रम बत्रा का साहस याद है, "यह दिल मांगे मोर" का नारा हर किसी के साथ है। ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव की वीरता, जो दुश्मन के बंकर में जाकर दिखाया।

हर जवान ने अपने प्राणों की बाजी लगाई, भारत माता की रक्षा के लिए, हर एक ने अपनी जान की बाजी लगाई।

कारगिल की विजय, एक शौर्य की कहानी, भारत की माटी में है वीरों की रवानी। 26 जुलाई का दिन, जब हुआ ऐलान, दुश्मन को हराया, हमें मिली पहचान।

वो दिन है गौरव का, सम्मान का प्रतीक, जब भारत ने दिखाया, शौर्य और श्रमिक। हमारी सेना का था वो अद्वितीय पराक्रम, जिसने दुश्मन को सिखाया सही सबक।

आज भी जब हम याद करते हैं उन वीरों को, आंखों में आंसू, दिल में गर्व भरता है। कारगिल की जीत, नहीं है सिर्फ एक कहानी, यह है भारत की शान, वीरों की निशानी।

हमारा नमन है उन वीरों को, जिन्होंने हमें दी यह विजय। कारगिल विजय दिवस पर, हमारी सच्ची श्रद्धांजलि, हमारे वीरों की जय।

Category:Poem



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Written by Raghuvir Singh Panwar

लेखक सम्पादत साप्ताहिक समाचार थीम

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