ज़रा मुस्कुराया करो

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17 May '24
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१)

ज़रा मुस्कुराया करो

यूँ दर्द सीने में न छुपाया करो
लाख हो दुःख ज़रा मुस्कुराया करो,

ज़िन्दगी है कुछ दिनों का कारवाँ 
यह भी बीत जाएगा इसे हँस के बिताया करो।

साँसों पर नहीं है बस किसी का
स्पन्दन पर कभी रोक न लगाया करो।

सब जानते हैं यहाँ कोई नहीं सगा अपना
फिर अपनों-परायों पर आँसू न बहाया करो।

जवानी भी नहीं ठहरती जीवन भर
इसे यूँही उदासी में न गँवाया करो।

२)

इ’ताब

देख तुम्हारा इ’ताब मैं सिहर जाता हूँ 
रातों की नींद, दिन का चैन भूल जाता हूँ,

जब-जब तुम्हें इ’ताब से भरा देखता हूँ 
मैं अपनी भूख और प्यास भी भूल जाता हूँ।

लगता है तुम्हारा इ’ताब सदा नाक पर रहता है 
देख तुम्हारा इ’ताब मैं प्यार को भी भूल जाता हूँ।

शायद तुम्हें अपने इ’ताब पर बड़ा ग़रूर है 
यह सोच कर मैं मिन्नतें करना भी भूल जाता हूँ।

लेकिन यह इ’ताब भी इक दिन भस्म हो जाएगा
यह शाश्वत सत्य मैं सदा क्यों भूल जाता हूँ।

(इ’ताब - प्रकोप, ग़ुस्सा)

३)

स्वप्न नहीं है यह जीवन

स्वप्न नहीं है यह जीवन
यह है सुख-दुख का उपवन
इसकी गोद में बसे हुए हैं 
हजारों रिश्ते और नाते 
इसमें मिलती है हजारों 
ठोकरें और जज्बातें 
जीवन के अनुभवों से ही 
जग को मिलता ज्ञान पिटारा 
जीवन आशा-प्रत्याशा और
निराशा का वो संगम है जहाँ
का हर दृश्य विहंगम है 
जीवन का हर पल नहीं होता
कभी भी  एक जैसा
कभी रहता हर्षित तो कभी 
रहता यह अवसादित 
जीवन मिलता नहीं बार-बार 
आओ, मिलकर करें उपकार।




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Written by Lalit Pharkya