चंपा का सफर

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19 Jun '24
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 अरे ओ चंपा उठ जा बेटी, आज तुझे लड़के वाले देखने आ रहे हैं.  अरे ओ चंपा कितना  सोएगी, मां की तेज आवाज के कारण मेरी नींद खुल गई.  मैं चंपा, उम्र 18 साल, 10वी के बाद पढ़ाई छूट गई, पापा का निधन हो गया था.  मां घर घर जाकर खाना  बनाकर मेरा और मेरा भाई नगेन और खुद का भरण पोषण करती हैं। सुबह के 11 बज चुके थे.  मां जोर सोर से घर को सजा  रही थी.  बरसों पुराने कुर्सी और मेज़ को कपड़े का कवर पहना रही थी. टूटी हुई चारपाई पर नई चादर बिछाकर अपने बेटी की शादी का सपना सजा रही थी। बाहर से नगेन  दौड़ता  हुआ आया और कहा लड़के वाले आ गए  हैं.  मैं चंपा आज अच्छे से तैयार होकर , साड़ी के पल्लू  को सहेजते हुए कुर्सी पर बैठ गई.  मां ने कहा अरे चंपा जा  रसोई में जा, जब आवाज लगाऊंगी तब  चाय का प्याला लेकर  आ जाना. थोड़ी देर बाद मां ने आवाज लगाई चंपा जरा चाय लेकर आना,  मैं सरमाते हुए चाय का प्याला लेकर आती हूं. सभी की नजर मुझ पर थी, मैं चाय का प्याला सबके हाथों में एक एक कर देती हूं,  अचानक एक महिला शायद वो लड़के की मां होंगी मुझसे पूछा घर का काम काज अच्छा से आता तो हैं न,  मैंने हां में सर हिला दिया.  अचानक से मेरी दुनिया ही बदल गई, 7 दिन के अंदर मेरा  विवाह तई हो गया।

मैं चंपा आज दुल्हन के वेश में  शादी के मंडप पर  हूं, मेरी शादी हो गई ।विदाई के वक्त मां और  नगेन ने नम आंखों से मुझे विदा किया. मैं तो जैसे पथराई सी गई थी। शादी के कुछ दिन बाद से ही मुझे ये अहसास होने लगा कि मेरी  हैसियत ससुराल में एक नौकरानी जैसी थी. सुबह से रात तक बस काम करो और ताने सुनो । मैंने एकदिन मेरी सास और ननद के बीच हो रही बातचीत को सुन लिया जो कुछ इस तरह थी.…

सास - मैंने तो जान बूझकर  कम पढ़ी लिखी और गरीब घर  की लड़की से अपने लड़के का शादी करवाया ताकि लड़की ज्यादा सर पर न चढ़ पाए और मेरे पैरों तले दासी बनकर रहे।

ननद- हां मां बिल्कुल ठीक किया. भैया का स्वभाव तो हम सब जानते ही हैं किस तरह वो शराब के नशे में डूबे रहते हैं .उनसे अच्छे घर की और ज्यादा पढ़ी लिखी लड़की थोड़ी न शादी करती, जो हुआ  ठीक ही हुआ।

मैंने बताया नहीं मेरा पति जिनका नाम नवीन हैं  वो एक शराबी और निकम्मा इंसान हैं. शराब के नशे में धुत रहते हैं , मुझे मारते रहते  और अपने बाप का पैसा उड़ाया करते हैं ,यही उनका काम हैं। उसने पता  नहीं क्यों शादी किया था। एकदिन शराब के नशे में नवीन मुझे  पिट  रहे  थे, मेरी सास तमाशा देख रहीं थी,  कह रही थी औरत को इतना तो सहन करना ही  पढ़ता हैं।

पता नहीं उसदिन मेरा  सब्र का बांध टूट गया मैंने अपने सास से कहा  माजी अगर बाबूजी ने आपको  इस तरह से पीटा होता तो तब  आप क्या कहती? आप जो मुझे  गरीब और कमजोर समझ कर अपने बेटे के  साथ मेरी शादी करवाई अगर कोई आपके बेटी के साथ भी ऐसा ही करे तब आपको कैसा अनुभव होगा? मैंने अपने पति के गाल पर दो तमाचा मारे और मैं भागते हुए बस स्टैंड पर आ गई. किसी तरह से अपने मायके वापस आई। मां के घर में तो जैसे मुझे देखकर मातम सा छा गया. मां ने कहा देख चंपा अब वही तेरा घर हैं, जो हैं जैसा हैं तुमको अब वही रहना हैं. समाज को हम क्या जवाब देंगे?  उधर से मेरे ससुराल से  भी मेरी सास ने मां को फोन किया कि जो हुआ भूल जाए और अपनी लड़की को वापस भेज दे आखिर एक शादीशुदा लड़की अकेली क्या करेगी? मेरी मां रोज मुझे समझाती और अंत में थक कर बैठ जाती।

मैं चंपा ज्यादा पढ़ी लिखी भी नहीं थी ऊपर से ससुराल से वापस  आ गई थी,  आखिर क्या करती ? पर मैंने ठान लिया  वापस नहीं जाना . मैंने  मां के काम में ही हाथ बटाना शुरू कर दिया.  वो घर घर जाकर खाना बनाती थी अब मैं भी साथ जाने लग., उनका काम अब जल्दी हो जाया  करता हैं। नगेन का भी बोर्ड एग्जाम नजदीक आ रहा  हैं,वो भी  मन लगाकर पढ़ाई कर रहा था। धीरे धीरे  मैंने भी  दो तीन जगह झाड़ू, पोछा का काम करना शुरू कर दिया और प्राइवेट में इंटर कॉलेज में दाखिला ले लिया. मैं दिन में काम करती और रात में पढ़ाई करती। इसी तरह से दिन गुजर रहे थे। मां को सभी समझाते कि लड़की को वापस भेज दो,पर मैंने किसी की न सुनी . किसी तरह से इंटर का एग्जाम पास कर  गई। मैं अब अपने आसपास के छोटे बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ा दिया करती हूं। एकदिन मेरी  मुलाकात मेरे ही पड़ोस में रहनेवाली फूलो दीदी से हुआ ,उन्होंने जब मेरी कहानी सुनी तब कहा तुमने जो किया सही किया।फूलो दीदी एक आंगनबाड़ी सेविका थी, उन्होंने मुझे आंगनबाड़ी भर्ती ,  सुपरवाइजर व सहायिकाओं की भर्ती निकल चुकी इस बात की जानकारी दी। मुझे  फॉर्म  भरवाया। 

मैं चंपा आज एक सरकारी आंगनबाड़ी सहायिका हूं।मुझे खुद पर गर्व हैं  क्योंकि मैंने जो ससुराल वापस नहीं जाने का निर्णय लिया था वो मेरे लिए  सठीक था।

मैं चंपा आज ये कह सकती हूं एक औरत अगर एक औरत को मदद करे तो  हम महिलाए नारी सशक्तिकरण के चरम सीमा पर  पहुंच सकते हैं। लेकिन एक महिला ही एक महिला को नीचा दिखाती हैं, ईर्षा, घृणा आदि के कारण एक नारी ही एक नारी के पतन का कारण बन जाती हैं.  जैसे मेरी सास और ननद ही मेरी दुश्मन बन बैठी।

 महिला सशक्तिकरण  तभी  संभव हैं जब महिलाए खुद जागृत हो और महिलाए वापस में तालमेल बनाकर चले और खुद को सशक्त बनाए , एक दूसरे का सम्मान करे क्योंकि एक नारी ही एक नारी के दर्द को अच्छे से  समझ सकती  है और खुद को सशक्तिकरण के चरम शिखर पर ले जा सकती हैं। मैं आज वकील से मिलकर  विवाह विच्छेद के लिए कोर्ट में अपील कर आई हूं।

मैं चंपा आज सभी नारियों से अनुरोध करती हूं कि वो मेरी तरह सशक्त बने। 

                            समाप्त




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Written by Mira dimpi

लेखन मेरा शौक हैं, बस अपने भावनाओ को शब्दों में पीरो कर खुद को खुशी देती हुं।