जाँबाज डॉक्टर

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27 Jul '24
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सफेद चादरों से ढ़का लद्दाख बॉर्डर जहाँ हड्डी को जमाती कड़कडाती ठंड थी, वहाँ बिना किसी शिकन के हमारे देश के प्रहरी हर वक्त मुस्तैदी से तैनात अपने देश के लिए जान लुटाने को तैयार बैठे थे।

होली, रक्षाबंधन और नवरात्रि बीत चुकी थी, आने वाली थी दिवाली और दिवाली के दीये की तरह अपने जीवन को जगमग बनाने के लिए अपने-अपने बंकरो में दिवाली की तैयारी में जुटे हुए थे।

चाहे बर्फ ही बर्फ चारों ओर क्यूँ ना फैली हो, पर अपने त्योहारों पर धूम मचाने की चाहत उनके बुलंद हौसलों में साफ दिख रही थी।

अपने परिवार से दूऱ भौतिक सुख-सुविधाओं से वंचित इन जवानों की आँखों की चमक और माथे का तेज देखकर हर कोई नतमस्तक होता ही रहता है।

            अभी अभी इनकी टुकड़ी से डॉक्टर सन्याल जुड़े थे, आर्म्ड फोर्स मेडिकल सर्विस के तहत इनकी तैनाती  अभी-अभी यहाँ हुई थी।

डॉक्टर सन्याल की उम्र बहुत ही कम थी लेकिन वो एक खुशमिजाज इंसान थे। वो बोलते कम थे क्योंकि उनका मानना था कि इंसान को अपना मुँह जरूरत के वक्त ही खोलना चाहिए।

देश के लिए मर-मिटने का जज्बा लिए हुए वो हमेशा अपने कर्तव्यों के प्रति प्रतिबद्ध थे।
आज की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत थे डॉ सन्याल।

"क्या साहब...? आप दिवाली के बाद हमारी टुकड़ी में शामिल होने आ जाते?"
फौजी रामप्रकाश यादव ने डॉक्टर सन्याल से पूछा।

"नहीं...! मेरी छुट्टियाँ खत्म हो गई हैं और मुझे  अपने कर्तव्य के साथ बेईमानी करना पसंद नहीं है। ज़ब छुट्टियाँ खत्म हो गईं तो घर में मेरा क्या काम है?"

"अपना घर जिससे कभी किसी का भी मोह भंग नहीं होता है, उसे भूलकर आप यहाँ आ गए। वाह...! साहब आप जैसे लोग ही देश की प्रगति की रीढ़ हैं।"

"क्यों? आपका योगदान कैसे कम है? जरा हमें अपनी बात समझाइए?"

"नहीं साहब जी, हम सच कह रहे हैं। आप देश में किसी भी अस्पताल में जाकर देशसेवा कर सकते थे लेकिन आपने यहाँ आर्म्ड फोर्स ज्वाइन किया। दिल से आपके लिए कंधों पर लगे इन सितारों की तरह इज्जत बढ़ जाती है।"

"अच्छा, इस बार दिवाली के जगमगाहट की क्या व्यवस्था की गई है? मैं तो सीमा पर दिवाली मनाने के लिए काफी उत्सुक हूँ।"

"सारी तैयारी बहुत बढ़िया है, फौजी भाइयों ने बढ़िया खाना और नाच-गाने का इंतजाम भी कर रखा है।"

"वाह बहुत बढ़िया और क्या चाहिए? बचपन में दिवाली मैं पटाखों से मनाता आया हूँ और आज मैं हँसी-ख़ुशी से नाच-गाकर अपने दूसरे परिवार के साथ दिवाली मनाऊंगा।" डॉक्टर सन्याल का उत्साह देखकर रामप्रकाश भी मुस्कुरा उठा।

बँकरो में ख़ुशी की लहर थी, सबको चौकसी भी पूरी रखनी थी। सीमा पार से कायर आतंकवादी हमारे त्योहारों का रंग फीका करने में लगे ही रहते हैं। उनके मंसूबो पर पानी फेरना भी जरूरी था।

                        आज दिवाली का दिन भी आ गया, रात के कार्यक्रम की तैयारी भी पूरी हो चुकी थी। सब लोग अपने बँकरो से निकलकर एक-दूसरे को दिवाली की बधाई दे रहे थे। आज सब दिवाली के पटाखों को छोड़ने की तैयारी में थे और शाम में लक्ष्मी-पूजन के बाद दीये से अपने बँकरो को जगमग कर सारे सैनिक दिवाली के जश्न में खोए हुए थे कि तभी अचानक से गोली बारी शुरु हो गई।

अभी सब समझने की कोशिश कर ही रहे थे कि हुआ क्या है कि तब तक गोलीबारी और तेज हो गई।

कुछ  सैनिक शहीद हो गए थे और कुछ घायल हो गए थे।

घायलों को इलाज के लिए डॉक्टर सन्याल के पास लाया गया। हमला अचानक से हुआ था, आतंकवादी घात लगाकर बैठे थे। बर्फ पर। ये तुम्हारी सीमा और ये हमारी सीमा जो तय थी, वहीं पर आतंकवादीयों ने हमला कर दिया था।

बहुत सारी क्षति के बाद जवानों ने वायुसेना को मदद के लिए बुलाया था। उन्हें आने में कितना समय लगेगा इसका अंदाजा किसी को नहीं था और उसी बीच में अपने जवानों का बहता हुआ खून देखकर डॉक्टर सन्याल का खून भी खौल उठा और उन्होंने मन ही मन ठान लिया था कि देश में अदृश्य शत्रु से लडने वाले हाथ भी  उनसे अंजाने में ही लड़ रहे हैं तो फिर  मैं तो इन शत्रओं का इलाज अच्छे से जानता हूँ।

उन्होंने अपने सहायक को घायल  सैनिकों का उपचार करने में लगा दिया और खुद  पास में पड़ी बंदूक लेकर मैदान में कूद पड़े।

आज उन्हें खुद की भी नहीं सुननी थी। जब तक वायुसेना मदद के लिए आएगी तब तक देर होने की संभावना  ज्यादा थी।
अपने देश की जमीन पर अचानक से त्योहार का रंग फीका नहीं होने देने का प्रण उन्होंने कर लिया था।

         दहशतगर्दो पर अपनी बंदूक से निशाना बनाते हुए वो उन सब पर यमराज की तरह टूट पड़े थे। उनकी गोलीयाँ अब तक ना जाने कितनों को अपना निशाना बनाकर उन्हें खाक बना चुकी थी।

उनके इस जोश से दहशतगर्दो के खेमे में अचानक मायूसी की लहर दौड़ पड़ी थी। उन्हें ये समझ में नहीं आ रहा था कि त्योहार की ख़ुशी में डूबी ये टुकड़ी आग का गोला बरसा कैसे  रही थी?

                    उन कायरों का ध्यान उस ओर गया जहाँ से सबसे ज्यादा गोलीबारी हो रही थी, उस जगह को उड़ाने के उद्देश्य से उन्होंने एक ग्रेनेड का गोला उस ओर फेंका जो डॉक्टर सन्याल के पास जाकर गिरा तो सही लेकिन महादेव की कृपा से वो वहीं फुस्स हो गया।

कभी भी कुछ भी हो सकता था इसलिए वो अपने टुकड़ी को लेकर पीछे हट गए।

सच में महादेव की कृपा ही थी कि ग्रेनेड काफी  देर तक नहीं फटा लेकिन सब की चिंता दूर करने के लिए  डॉक्टर सन्याल ने फुर्ती से आगे बढ़कर  हर हर महादेव बोलते हुए उसे उठाकर  दहशतगर्दो पर वापस फेंक दिया।

दूर तेजी से बिजली जैसी चमक फैली, धुएं का ग़ुबार उठा औऱ ज़ोरदार धमाका हुआ।
डॉक्टर सन्याल भी दूर गिर गए और उनको बहुत चोटें  आई।

अब दहशतगर्द इस बाऱ अपनी सारी शक्ति बटोर कर फिर उठे लेकिन तब तक वायुसेना ने हवाई हमला तेज कर दिया। उनके पराक्रम के आगे सारे दहशतगर्द भाग खड़े हुए।

साथ ही साथ वायुसेना ने अपने घायल जवानों को इलाज के लिए सेना अस्पताल ले जाना भी शुरू कर दिया।
      आज राष्ट्रपति भवन  में डॉक्टर सन्याल को सम्मानित किया जा रहा था, उनके हौसले औऱ जाँबाजी को पूरा देश  नमन कर रहा था।

कोई धन है क्या तेरी धूल से बढ़ के?
तेरी धूप से रोशन, तेरी हवा पे ज़िंदा
तू बाग़ है मेरा, मैं तेरा परिंदा
है अर्ज़ ये दीवाने की, जहाँ भोर सुहानी देखी
एक रोज़ वहीं मेरी शाम हो
कभी याद करे जो ज़माना, माटी पे मर-मिट जाना
ज़िक्र में शामिल मेरा नाम हो
ओ, देस मेरे, तेरी शान पे सदके
कोई धन है क्या तेरी धूल से बढ़ के?
तेरी धूप से रोशन, तेरी हवा पे ज़िंदा
तू बाग़ है मेरा, मैं तेरा परिंदा

Category:India



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Written by पूजा मणि

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