जगन्नाथ हैं नाथ हमारे, शिर पर उनका हाथ।
सदा सभी कुछ अच्छा होता, भाग्यवान के साथ।।
मैं सर्वोपरि भाग्यवान हूॅं, रंच नहीं सन्देह।
जगन्नाथ बरसाते रहते, मुझ पर अपना स्नेह।।
जादू नहीं प्रेम से बढ़कर, जग में कोई अन्य।
जो प्रेमी हैं जगन्नाथ के, धन्य-धन्य वे धन्य।।
जगन्नाथ से पहले खुद के, प्रेमी बनकर आप।
अवनी से अम्बर की दूरी, पल में सकते नाप।।
रंगमंच-सी इस दुनिया में, अभिनेता इंसान।
अपना अपना अभिनय करते, सब ज्ञानी गुणवान।।
सर्वश्रेष्ठ अभिनेता को ही, हैं सराहते लोग।
आओ इसके लिए लगाएं, जगन्नाथ से योग।।
आओ अपना भाग्य सराहें, मिला हमें वरदान।
हम सत्पथ पर चलें सर्वदा, इससे बड़ा न ज्ञान।।
जगन्नाथ की कृपा बरसती, लुटा रही आशीष।
बना रही अपने भक्तों को, कीर्तिजयी वागीश।।
निन्दक की टोकाटाकी से, कभी न बदलें चाल।
अपने सत्कर्मों के द्वारा, पैदा करें कमाल।।
जगन्नाथ हैं नाथ जगत के, कहलाते विश्वेश।
पोषण-भरण विश्व का करते, मुझ पर कृपा विशेष।।
@ महेश चन्द्र त्रिपाठी
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