माता-पिता प्रकृति के दिए वो अमूल्य उपहार हैं, जो हम सभी को मिलते हैं। ये अमूल्य धरोहर हमारे पास कब तक रहेगी, ये निर्णय लेना हमारे हाथ में नहीं होता। इसका निर्णय प्रकृति ही लेती है, लेकिन जब तक ये अमूल्य निधि हमारे पास है, हमें इसे संजो कर रखना चाहिए। माता-पिता वो वृक्ष हैं जो सदैव हमें आशीर्वाद और स्नेह की छाया देते हैं।
प्रत्येक बच्चे के लिए उसके माता-पिता, उसके जन्मदाता होने के कारण, उसके लिए तो भगवान ही होते हैं। हमने भगवान को कभी नहीं देखा है, इसलिए उनके प्रति हमारी आस्था होनी चाहिए या नहीं? ये विवाद का विषय हो सकता है! लेकिन हमें जीवन देने वाले माता-पिता तो हमारे सामने प्रत्यक्ष होते हैं और साथ ही उनके हमें यथायोग्य बनाने के लिए किए गए सारे प्रयास भी। अतः हम भगवान को माने या न माने, लेकिन हमारी अपने माता-पिता में अवश्य ही आस्था और निष्ठा होनी चाहिए।
माता-पिता हमारे लिए कितने महत्वपूर्ण होते हैं और हमारे लिए उनका वास्तविक मूल्य क्या है? ये बात प्रायः हमें उनके जाने के बाद ही समझ में आती है। लेकिन उनके जीवन काल में ही जो बच्चे इस बात को समझ लेते हैं, वो ही उनकी सही वैल्यू जान पाते हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश माता-पिता की कद्र करना हर किसी को नहीं आता। ऐसे लोगों को माता-पिता बोझ लगते हैं। लेकिन ऐसे लोगों को भी माता-पिता की वैल्यू उनको खोने के बाद समझ में आ ही जाती है।
एक जमाना ऐसा भी था, जो आज के समय से बिल्कुल अलग था। उस जमाने में संयुक्त परिवार हुआ करते थे, जिसमें न सिर्फ माता-पिता, बल्कि चाचा-चाची, ताऊ-ताई, दादा-दादी आदि खानदान के सभी लोग मिलकर एक साथ रहा करते थे। अब तो संयुक्त परिवार जैसे गुजरे जमाने की बात हो चुकी है, क्योंकि संयुक्त परिवार के लिए जिस प्रेम, संयम, त्याग, समर्पण और अनुशासन की आवश्यकता होती थी, वो सब कुछ पीढ़ी दर पीढ़ी खत्म होते चले गये। अब तो सयुंक्त परिवार का वो दौर किसी और युग की बात लगती है।
आधुनिक समय में मात्र पति-पत्नी और बच्चों को ही परिवार मानने वालों को समझ में आ जाना चाहिए कि यदि आप स्वयं अपने माता-पिता की कद्र नहीं करेंगे, तो फिर आप अपनी सन्तान से अपने लिए कैसे अपेक्षा रख सकते हैं? आप बबूल का पेड़ लगा कर आम के फल की अपेक्षा तो नहीं रखते हैं न?
माता-पिता का धूमधाम से श्राद्ध करने के बजाय उनके जीते जी ही उनका ख्याल रखें, उनको समुचित सम्मान दें, तो ये ज्यादा बेहतर रहेगा। माता-पिता को अगर आप उनके जीवन काल में ही उनके प्रति अपनी श्रद्धा और प्रेम दिखाएं, तो ये उनकी मृत्यु के बाद दुनिया को दिखाने के लिए दिखावटी आडम्बर से कहीं अधिक अच्छा होगा। माता-पिता का ऋण तो हम कभी चुका नहीं सकते, लेकिन उनका जीते जी ख्याल रखकर हम उस ऋण की कुछ भरपाई तो कर ही सकते हैं।
-काफ़िर चंदौसवी
writer, poet and blogger
0 Followers
0 Following