आज चंचल के घर में खुशियों का माहौल है। लड़के वाले देखने जो उसको आए है। लड़के का नाम अमर खन्ना है और वो एक फौजी है। अमर को भी चंचल इक नज़र में पसंद आ गई। कुछ दिनों के बाद चंचल और अमर की शादी बड़ी धूमधाम से हुई।
शादी के दूसरे ही दिन अमर के घर एक तार आता है जिसमें सीमा पर तनाव बढ़ने के कारण उसे छुट्टी पर से वापस आने का आदेश था।
ये सुनकर चंचल के पैरों के नीचे से जमीन घिसक गई और वो बेसुध सी हो गई। अचानक घर में जो खुशियों की किलकारी मच रही थी वो निराशा में बदल जाती है। एक चेहरे को छोड़कर सभी के चेहरे पर शोक और डर व्याप्त था। वो चेहरा था अमर का।
अमर के चेहरे पर मुस्कान के साथ इक अलग प्रकार की चमक थी और वो जल्दी से जल्दी अपने सामान पैक करने में लगा था। ये देखकर अमर की मां उसके पास आई और रोते हुए बोली " बेटा! अपनी मां को छोडकर अभी जाना जरूरी है क्या?"
अमर ने कहा -" मां! क्या तू ही बस मेरी मां है ये धरती क्या मेरी मां नहीं है। आज एक मां अपने बेटे से अपने खून का कर्ज चुकाने के लिए बोल रही है और दूसरी मां उसे ऐसा करने से रोक रही है। नहीं मां नहीं। आप अपने बेटे को आशीर्वाद दे कि अपने फर्ज को निभाते समय अगर उसके सामने काल भी आ जाए तो वो उसे भी मात दे"।
मां रोते हुए बोली -" बेटा! तेरा कोई कुछ नही कर सकेगा। तुझे मेरी भी उम्र लग जाए"।
अमर समान पैक कर तैयार होकर अपने पिता के पैरों में झुककर कहता है कि " पापा! अगर कोई गलती हो गई हो तो क्षमा करना"। उसके पिता उसको सीने से लगा लेते है और कहते है कि " मुझे फख्र है कि मै मेजर अमर खन्ना का पिता हूं। भगवान तुमको लंबी उम्र दे"।
जैसे ही अमर सामने देखता है तो उसकी पत्नी चंचल आरती की थाल लेकर खड़ी रहती है। अमर उसके पास जाता है तो चंचल उसकी आरती करती है और तिलक लगाती है। दोनों की आंखें मिलती है जो कि बिना कुछ बोले सब कुछ बयां कर देती है। तभी सोच में डूबी हुई एक नवयौवना को अचानक मंच से एक आवाज सुनाई देती है, " अब हम आमंत्रित करते है वीरगति प्राप्त स्वर्गीय मेजर अमर खन्ना की धर्मपत्नी मिसेज चंचल खन्ना को कि वो मंच पर आए और ये उपाधि स्वीकार करें। धीरे धीरे क़दमों से गोद में एक लड़का लिए सफेद साड़ी में उस नवयौवना 'चंचल' का मंच पर जाना।
- कुमार विशाल
0 Followers
0 Following