संत कबीर साहब के हर श्लोक से एक नई सीख मिलती है। अगर उनकीं सीख को हम अपने जीवन में आत्मसात कर लें तो नि:संदेह हमारे जीवन में बहुत बड़ा बदलाव आ सकता है और हमारा जीवन श्रेष्ठ बन सकता है। संत कबीर जयंती पर प्रस्तुत हैं वे दस श्लोक, जो हमारे जीवन को श्रेष्ठ बनाने में महत्ती भूमिका निभाने की क्षमता रखते हैं।
तिनका कबहूँ ना निंदिये, जो पाँव तले होय।
कबहूँ उड़ आँखों मे पड़े, पीर घनेरी होय।।
संत कबीर साहब के इस श्लोक में सीख मिलती है कि हमें कभी किसी गरीब एवं कमजोर व्यक्ति को पीड़ा नहीं देनी चाहिए, उसका मजाक नहीं उड़ाना चाहिए और न ही उसे तुच्छ समझकर उसकी निंदा करनी चाहिए। उसका भी अपना एक अस्तित्व और महत्व होता है। वे कहते हैं कि एक तिनके को भी कभी छोटा नहीं समझना चाहिए, भले ही वो पांव तले ही क्यूं न हो, यदि वह आपकी आँख में चला जाये तो बहुत तकलीफ देता है। वैसे ही गरीब और कमजोर व्यक्ति की कभी निंदा नहीं करनी चाहिए।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।
संत कबीर साहब के इस श्लोक से ज्ञान मिलता है कि हमें कभी बड़प्पन दिखाने का ढ़ोंग नहीं करना चाहिए। वे कहते हैं कि खजूर के पेड़ जैसा बड़ा होने से कोई फायदा नहीं है। क्योंकि खजूर के पेड़ से न तो पंथी को छाया मिलती और उसके फल भी बहुत दूर लगते है, जो तोड़े नहीं जा सकते। संत कबीर दास जी कहते हैं कि बड़प्पन के प्रदर्शन मात्र से किसी का भला नहीं होता।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मीलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।
संत कबीर साहब कहते हैं कि हमें दूसरों के अन्दर बुराई देखने की बजाय अपने अंदर झांककर देखनी चाहिएं। वे कहते हैं कि मैं बुराई की खोज में निकला तो मुझे कोई बुराई नहीं मिली। लेकिन जब मैंने मेरे खुद के मन में देखा तो मुझे मुझसे बुरा कोई नहीं मिला।
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।
संत कबीर साहब कहते हैं कि जो हमेशा प्रयास करते रहते हैं, वो अपने जीवन में कुछ न कुछ पा ही लेते हैं। जैसे गोताखोर गहरे पानी में जाता है तो कुछ न कुछ पा ही लेता है और जो डूबने के डर से प्रयास नहीं करता है, वो किनारे पर ही रह जाता है।
गुरू गोविन्द दोउ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरू आपने, गोविन्द दियो बताय।।
संत कबीर साहब कहते हैं कि यदि आपके सामने गुरू और इश्वर दोनों ही खड़े हों तो आप किसके चरण स्पर्श सबसे पहले करेंगे? वे कहते हैं कि गुरू ने अपने ज्ञान से हमें इश्वर तक पहुंचाया है तो गुरू की महिमा इश्वर से अधिक है, इसलिए हमें गुरू के चरण स्पर्श सबसे पहले करने चाहिए।
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।
संत कबीर साहब कहते हैं कि अति हर मामले में बुरी ही होती है। वे कहते हैं कि जरूरत से ज्यादा बोलना अच्छा नहीं होता और जरूरत से ज्यादा चूप रहना भी अच्छा नहीं होता। जैसे बहुत अधिक मात्रा में वर्षा भी अच्छी नहीं होती और धूप भी अधिक अच्छी नहीं होती।
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय।।
संत कबीर साहब कहते हैं कि हमें भगवान को हमेशा याद रखना चाहिए। वे कहते हैं कि मनुष्य इश्वर को दुःख में ही याद करता है। सुख में कोई भी इश्वर को नहीं याद करता है। यदि सुख में इश्वर को याद करें तो दुःख किस बात का होय।
मन के हारे हार है मन के जीते जीत।
कहे संत कबीर हरि पाइए मन ही की परतीत।।
संत कबीर साहब कहते हैं कि अगर हमें सफलता हासिल करनी है तो हमें कभी भी मन से हार नहीं माननी चाहिए। वे कहते हैं कि जीवन में हार-जीत हमारे मन की भावना पर निर्भर करता हैं। यदि हमने मन से हार मान ली और निराश हो गए तो हमारी पराजय निश्चित हैं और यदि मन से मेहनत करेंगे तो निश्चित ही हमें विजय प्राप्त होगी। संत कबीर कहते हैं कि साथ ही मन में पूर्ण विश्वास हो तो भगवान की भी प्राप्ति हो जाती हैं। यदि मन में विश्वास ही न हो फिर भगवान कैसे प्राप्त हो सकते हैं।इसीलिए हमें हमेशा सकारात्मक रहना चाहिए।
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।।
संत कबीर साहब कहते हैं कि हमें जीवन में हमेशा धैर्य रखना चाहिए। वे कहते हैं कि हमें अपने मन में धीरज रखना चाहिए। मन में धीरज रखने से ही सब कुछ होता है। जैसे माली यदि पेड़ को सौ घड़े से सींचता है, पर फल तो ऋतु आने पर होते हैं।
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगो कब।।
संत कबीर साहब कहते हैं कि यदि हमें जीवन में सफल होना है तो कभी भी आज का काम कल पर नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि कल का कोई भरोसा नहीं है कि हमें यह काम करने का दोबारा अवसर मिलेगा या नहीं। उनके अनुसार, जो निरंतर अपने काम को टालते रहते हैं, उन्हें कभी भी अपने काम को कल पर नहीं छोड़ना चाहिए। जो कार्य आप कल करना चाहते हैं, उसे आज ही कर लेना चाहिए और जो आज करना है, उसे अभी कर देना चाहिए। क्योंकि पल में कुछ भी प्रलय हो सकता है। यदि ऐसा होता है तो फिर वह कार्य कब हो पाएगा। इसीलिए हमें अपना हर कार्य समय पर करना चाहिए।
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक (स्वतंत्र)
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