तुम कहो तो आज मधुमय गीत गाऊं।
तुम कहो तो मैं तुम्हारे पास आऊं।।
कुंदनी काया सुचिक्कण में विचर लूं।
प्रीति अभ्यंजन करे, मैं पीर हर लूं।।
तुम कहो तो मेघ बन मैं बरस जाऊं।
तुम कहो तो मैं तुम्हारे पास आऊं।।
दूरियां दिल की बढ़ा, तुम रोज रोई।
व्यर्थ चिन्ता में अहर्निश रही खोई।।
आज अनुमति दो तुम्हारा परस पाऊं।
तुम कहो तो मैं तुम्हारे पास आऊं।।
अब मान दो मनुहार को, इनकार तज।
आज अवलोका तुम्हें, जब रही थी सज।।
तुम कहो तो मैं सितारे तोड़ लाऊं।
तुम कहो तो मैं तुम्हारे पास आऊं।।
पास रहकर दूरियों में रहा जीता।
वर्जनाओं का अमृत घट रहा पीता।।
अब कहो तो बिना सोए निशि बिताऊं।
तुम कहो तो मैं तुम्हारे पास आऊं।।
आज आतुरता बढ़ी है, जोश जागा।
जा रहा है मिलन का सुख अब न त्यागा।।
आज जी करता तुम्हारे गुण गिनाऊं।
तुम कहो तो मैं तुम्हारे पास आऊं।।
लो, खड़ा मैं हो गया हूं, अब संभालो।
मत अधूरा गहो, पूरा मुझे पा लो।।
बांह गह लो सुमुखि यदि मैं डगमगाऊं।
तुम कहो तो मैं तुम्हारे पास आऊं।।
खाट जो अब तक खड़ी थी, अब गिराएं।
गीत चिर परिचित प्रणय के गुनगुनाएं।।
तुम कहो तो आज अपना, उर बिछाऊं।
तुम कहो तो मैं तुम्हारे पास आऊं।।
महेश चन्द्र त्रिपाठी
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