एक पेड़ खड़ा है… ज़मीन पर…। जितना हो सकता है, पेड़ देता ही देता है, लेना तो उसने सीखा ही नहीं…। पेड़ का स्वभाव मानव जैसा नहीं है… उसको केवल उतना ही चाहिए, जितनी उसको आवश्यकता है… यानी केवल पानी ही तो चाहिए…। पानी ही उसकी खुराक है…। व्यक्ति अपने कल के लिए भी चिंता करता है… लेकिन पेड़ को इसकी चिंता नहीं है…। पेड़ अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए खुद प्रयत्न नहीं कर सकता, क्योंकि वह चल नहीं सकता। वह मानव समाज पर निर्भर रहता है… लेकिन हम क्या करते हैं… झुलसाने वाली गर्मी की तपिश सहकर भी वह छाया देता है… फूल देता है और फल भी देता है… इसके बदले में वह केवल पानी ही चाहता है…। पेड़ में भी जीवन होता है… पेड़ को पानी देना गरीब और असहाय व्यक्ति की सेवा करने के समान है।
हमारे पूर्वजों ने प्रकृति से पारिवारिक रिश्ते जैसे संबंध स्थापित किए… तुलसी को हम माता कहते हैं। और उसकी पूजा करते हैं। तुलसी का पौधा एक औषधि भी है…। जिसके घर में तुलसी का पौधा होता है, वहां शुद्ध वायु मिलती है…। इसी प्रकार प्रकृति में कई ऐसे ही पौधे और पेड़ होते हैं… जो व्यक्ति के लिए अच्छे होते हैं। लेकिन व्यक्ति पेड़ों के लिए अपने कर्तव्य का कितना निर्वहन करता है… यह एक ज्वलंत सवाल है…। अभी गर्मी का मौसम है… पेड़ अगर बोल पाते तो वह हर घंटे पानी मांगते… लेकिन उनके पास जुबान नहीं है…। लेकिन हम तो सोच सकते हैं… अपने कर्तव्य निभा सकते हैं…। आप पेड़ों की मौन की भाषा समझिए… और उन्हें जीने दें…। नहीं तो एक दिन ऐसा भी आ सकता है कि हमारे पास ऑक्सीजन देने वाले पेड़ नहीं होंगे… और हम भीषण गर्मी से व्याकुल हो रहे होंगे…।
आगे बारिश का मौसम आने वाला है… इस समय तमाम व्यक्ति और संस्थान पौधारोपण करने के लिए सक्रिय हो जाते हैं…। ऐसा हर वर्ष होता है…। लेकिन एक वर्ष बीतते बीतते उनमें से कुछ ही पेड़ बचते हैं…। शेष सब मर जाते है…। जैसा पहले भी लिखा जा चुका है कि पेड़ों में भी जीवन होता है… इसलिए एक पेड़ का समाप्त होना, एक जीवन का समाप्त होना ही है…। यह हत्या के समान ही है। इसलिए हम पेड़ अवश्य लगाएं, साथ ही उनको बचाने का भी कार्य करें…। यह हमारे लिए ही हितकर है…। पेड़ आपको आशीर्वाद ही देंगे…।
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