काश! पेड़ होता मैं ऐसा

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10 Jun '24
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काश! पेड़ होता मैं ऐसा 

लगते मुझमें मीठे फल ।

मेरे  हरे-हरे  पत्तों में 

रहता भरा अनूठा जल ।।
 

पथिकों को छाया देता मैं 

उनकी भूख-प्यास हरता ।

नयी चेतना, नव उमंग मैं 

उनके अन्तस में भरता ।।
 

अगणित विहग बसेरा करते 

मेरी टहनी-टहनी पर ।

मेरे दर्शन करने आते 

दूर-दूर से नारी-नर ।।

 

 

मेरे सूख गये पत्तों से 

रामबाण चूरन बनता ।

हर बीमारी में चूरन खा 

रोगमुक्त होती जनता ।।

 

 

महेश चन्द्र त्रिपाठी 

Category:Poem



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Written by Mahesh Chandra Tripathi

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