मैं नदी और तुम नहर

नदी नहर

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06 Jun '24
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तुम नहर से हों

हम  कच्ची मिट्टी की नदी से

तुम शहर से, मैं गांव में 

तुम दुसरो के बनाए हुए रस्तों पर चलों

हम खुद ही रस्ते बनाते.....


 

तुम पक्की सीमेंट से मजबूत बनें

हम कच्चे रास्ते वाले ही सही

तुम नदीयों से जुड़े हों

हम समुद्र के करीब है

तुम्हारी कुछ हद हैं

हमारी कोई सीमा नहीं है।


 

तुम नदीयो से पानी लेते हों

हम खुद पानी बना लेते हैं

तुम हमारी कहीं बातों की जुबानी  

लेते हों..

और सिर्फ किसान की फ़सल

 को जन्म देती हूं।

 हम सारे  संसार को जींदा कर रखें हैं..

 सिर्फ फर्क इतना है...

 तुम्हारे सरल सीधे रास्ते....

 हम पहाड़ों के पत्थर से हों के गुजरे हैं......


 

बस हम नदी और तुम नहर हों

 विशाल ✍️

  

          धन्यवाद


 

 हमारी लेखनी और पहचान 

Category:Poetry



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Written by vishvash gaur

हम हमेशा पृथ्वी के दो ध्रुवों की तरह रहे एक दूसरे से बिल्कुल विपरीत जो कभी मिल नही सकते पर उनका होना जरूरी है संतुलन के लिए कभी मांगा ही नही एक दूसरे को एक दूसरे से ना ही ईश्वर से अब वो ही जाने उसने क्यों हमें एक दूसरे के इतना समांतर रख दिया जो साथ चल तो सकते हैं पर हाथ थाम कर नहीं