तुम नहर से हों
हम कच्ची मिट्टी की नदी से
तुम शहर से, मैं गांव में
तुम दुसरो के बनाए हुए रस्तों पर चलों
हम खुद ही रस्ते बनाते.....
तुम पक्की सीमेंट से मजबूत बनें
हम कच्चे रास्ते वाले ही सही
तुम नदीयों से जुड़े हों
हम समुद्र के करीब है
तुम्हारी कुछ हद हैं
हमारी कोई सीमा नहीं है।
तुम नदीयो से पानी लेते हों
हम खुद पानी बना लेते हैं
तुम हमारी कहीं बातों की जुबानी
लेते हों..
और सिर्फ किसान की फ़सल
को जन्म देती हूं।
हम सारे संसार को जींदा कर रखें हैं..
सिर्फ फर्क इतना है...
तुम्हारे सरल सीधे रास्ते....
हम पहाड़ों के पत्थर से हों के गुजरे हैं......
बस हम नदी और तुम नहर हों
विशाल ✍️
धन्यवाद
हम हमेशा पृथ्वी के दो ध्रुवों की तरह रहे एक दूसरे से बिल्कुल विपरीत जो कभी मिल नही सकते पर उनका होना जरूरी है संतुलन के लिए कभी मांगा ही नही एक दूसरे को एक दूसरे से ना ही ईश्वर से अब वो ही जाने उसने क्यों हमें एक दूसरे के इतना समांतर रख दिया जो साथ चल तो सकते हैं पर हाथ थाम कर नहीं