मैं ख़ुद डॉक्टर हूं" - यमुना

मैं ख़ुद डॉक्टर हूं" - यमुना

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08 Jun '24
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मैं ख़ुद डॉक्टर हूं" - यमुना

सदियों से यमुना और कारखानों के बीच के संबंध बिगड़ते जा रहे हैं। शायद वैश्वीकरण ने यमुना के उपकारों को भुला दिया है। यमुना को इस बात से अधिक हैरानी नहीं हो रही होगी जितनी कि इस बात से होती होगी कि इंसान भी उसके उपकारों को भूलता जा रहा है। यमुना का जन्म हिमालय क्षेत्र में होता है, जहाँ उसका रूप स्वर्गलोक की अप्सराओं से कम नहीं है। मनुष्य के संपर्क में आते ही उसे विभिन्न प्रकार की बीमारियों का सामना करना पड़ता है। इतनी अपार संपदा होने के बाद भी यमुना के पास एक अच्छे अस्पताल में स्वयं का इलाज़ कराने का कोई विकल्प नहीं है। यमुना मनुष्य के एक गुण से बेहद प्रभावित होती है। मनुष्य ने यमुना को न केवल उसके अच्छे समय में बल्कि उसके बुरे समय में भी उसका साथ दिया। अपने शुरुआती दिनों में यमुना का स्वरूप बेहद शानदार था। उसकी अपार संपदा के कारण मनुष्य का बहुत प्रेम भी मिलता था। धीरे-धीरे वह मनुष्य के सुख-दुख में उसकी साथी बन चुकी थी। उसने मनुष्य को वैश्वीकरण के लिए प्रोत्साहित भी किया - किसानों को उनके खेत के लिए और मछुआरों को उनकी मछलियों के लिए। बड़े कारखाने के मालिकों के लिए उनके जहरीले उत्पादन के लिए भी। 

आज भी यमुना की इतनी दुर्दशा होने के बाद भी मनुष्य उसका साथ नहीं छोड़ता। कुछ समाजसेवी यमुना में बह रहे प्लास्टिक को नदी से निकालते हैं और फिर उसे बेचते हैं। यमुना की ममता तो देखिए, लेकिन इस स्थिति में भी मनुष्य अपना लाभ ही देख रहा है। यमुना इसे मनुष्य का प्यार समझ बैठी है। प्रशंसा नहीं तो आलोचना भी नहीं। आज यमुना के खराब पानी के कारण मनुष्य के स्वास्थ्य पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ा है। यह प्रभाव उन लोगों पर भी है जो यमुना से बहुत दूर रहते हैं। सब्जियाँ तो खाते ही होंगे। कुछ लोगों पर इसका सर्वाधिक प्रभाव देखने को मिला है, जो इसके जल को ग्रहण करते हैं। परंतु लोगों ने इसकी जिम्मेदारी ली। सरकार द्वारा कुछ प्रतिबंध लगाए गए, जिससे कुछ राहत मिली। 

हमें यह जानना चाहिए कि यमुना ख़ुद क्या चाहती है। विगत कुछ वर्षों पहले वैश्विक महामारी से हमें एक चीज़ सीखने को मिली कि प्रकृति स्वयं एक डॉक्टर है और वह तब कार्य करती है जब उसे मनुष्य का हस्तक्षेप न मिले। यदि हम यमुना के कार्यों में हस्तक्षेप न करें तो शायद फिर से यमुना अपना यौवन काल देख सकेगी। यदि हम अपनी पूजा-पाठ को विराम दें तो वही यमुना की सच्ची पूजा होगी। इस बार हमें यमुना को कुछ समय अकेले बिताने देना चाहिए।

बिंदेश कुमार झा

Category:Nature



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Written by BINDESH KUMAR JHA