मत देखो मुझे इन अधूरे अंगों से,
मैं अधूरा नहीं — बस कुछ अलग हूँ रंगों से।
मेरे हाथ नहीं तो क्या, मैंने आसमान थामा है,
बैसाखियाँ नहीं, ये मेरे हौसले का परचम है।
मैं बोल नहीं सकता, पर मेरी खामोशी गूंजती है,
हर चीख से ज़्यादा मेरी नज़रें कुछ कहती हैं।
मैं सुन नहीं पाता, मगर दुनिया की धड़कन पहचानता हूँ,
हर थिरकते अहसास को भीतर से जानता हूँ।
तुम कहते हो – मैं असमर्थ हूँ, मैं कमज़ोर हूँ,
पर सच ये है – मैं भीतर से बहुत मज़बूत हूँ।
मैं हर दिन खुद से लड़ता हूँ,
हर सुबह खुद को जीतता हूँ।
जहाँ तुम एक ठोकर से टूट जाते हो,
मैं सौ बार गिरकर भी मुस्कुराता हूँ।
मुझे सहारा मत दो —
बस मुझे बराबरी से देखो।
ये दुनिया जब मुझे "दिव्यांग" कहती है,
तो मैं ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ।
कि उसने मुझे बनाया —
थोड़ा अलग, पर सबसे ख़ास।
मैं चाँद की तरह अधूरा ज़रूर हूँ,
पर मेरी रौशनी पूरी है।
मैं हार में भी जीतता हूँ,
क्योंकि मेरा साहस अधूरी दुनिया को भी पूर्ण बना देता है।
"मुझे देखो — दया से नहीं, प्रेरणा से।
मैं वो दीप हूँ, जो आँधी में भी जलता है।
मैं दिव्यांग नहीं —
मैं उम्मीद की आख़िरी किरण हूँ… और पहली मुस्कान भी।
( रघुवीर सिंह पंवार )
लेखक सम्पादत साप्ताहिक समाचार थीम
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