तिरंगा कैसे लहराएगा

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23 Jul '24
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जिस व्यथा में डूबा हुआ हूं मैं

जिस ग्लानि को तिरंगे में देख रहा हूं मैं

सोचना बस इक बार को

आज बगावत पर क्यों उतरा हुआ हूं मैं 

हर घर तिरंगा फहराया जायेगा

हर नागरिक शीश झुकायेगा

पर सुनो इक दफा अंशु को

क्या तिरंगा शान से लहरा पायेंगा

जब उठे हाथ सलामी देने

तो क्यों मैं यूं कांप गया

बलिदान, शांति और हरियाली के प्रतीक

रंगों को क्यों धर्मों में बांट दिया

शायद केसरिया और हरे के बीच

श्वेत रेखा शांति को इंगित है

शायद तभी उसमें 24 गुणों का प्रतीक

सार्वभौमिक धर्मचक्र अंकित है 

पर आज तिरंगा बस झंडा मात्र क्यों है

सिर्फ केसरिया हरे का ही नाम क्यों है

क्यों रक्त में नहा रही मेरी भारत माता

जिसके खातिर होती हिंसा

आखिर ऐसा भगवान क्यों है 

जिन आजाद और भगत का लहू देश पर कुर्बान हुआ

जिनकी कहानियां सुन-सुन मेरे लहू में तीव्र उबाल हुआ

जब कहां गया उन्हें आतंकवादी नेताओं द्वारा

मेरी दृष्टि में यह तिरंगे पर प्रहार हुआ,

भारत मां की कोख पर वार हुआ

आज कहां चुप बैठे हैं वो

राम पैगम्बर के नाम पर मर-मिटते है जो

ख़ून बहाते तुम उनके खातिर,

कभी दिखे नहीं तुमको जो

जो बलिदान कर गये खुद को तुम्हारे लिए,

देखो आज बदनाम खड़े हैं वो 

ये जो तुम तिरंगा फहराओगे

जय जवान जय किसान का नारा लगाओगे 

दशा देख जवान और किसान की

कैसे इतने कटु वाक्य कह पाओगे

वो जिसके लहू में भी तिरंगा बहता है

क्यों उस जवान से कोई सबूत मांगता है 

वो जो धूप में तपकर हमारा पेट भरता है 

पूछा कभी क्यों वो किसान आत्महत्या करता है 

चौथा स्तंभ जिसको कहते

बिक चुका है वो मिडिया

देश की गद्दी में जो है बैठे

उन्हें भी सेकनी बस अपनी रोटियां

युवा बैठे हैं बेरोजगार

देश का स्तर गिर रहा है 

महंगाई मार रहीं हैं हर दिन

मैंने बस सुना धर्म के नाम पर

फिर कोई नया विवाद चल रहा है 

अरे बस बस

एक दिन के लिए अपना देश प्रेम ना दिखाओ

सब एक थाली के चट्टे बट्टे हो

जाओ अपना धर्म और राजनीति का व्यापार चलाओ

दर्द सहने की आदी हो गई है

अब मेरी भारत माता 

तुम जाओ नारे लगाओ

तुम जाओ हर घर तिरंगा फहराओ

हम आम नागरिक है देश के

आजादी का अमृत महोत्सव मनायेंगे

तिरंगा फहरायेंगे हर चौक में

हम प्रभात फेरियां गायेंगे

तीनों रंगों के समक्ष शीश नवायेंगे

गांधी के साथ बोस को भी गायेंगे

राजनीति नहीं राष्ट्रधर्म निभायेंगे

कोई आजाद तो कोई भगत सिंह बन जायेंगे 

धर्मों में नहीं बंटेगे हम

बस भारत मां की स्तुति गायेंगे

केसरिया हरे नहीं होंगे

बस तिरंगे से पहचाने जायेंगे 

प्रण लेंगे आज विकृतियां दूर करने की

अब मां की कोख में रक्त नहीं बनायेंगे

बहुत रो चुकी भारत माता

अब तिरंगे को उसकी शान लौटायेंगे

हम आम नागरिक है देश के

सिर्फ हम ही तिरंगा लहरायेंगे

सौदागरों के समक्ष नहीं झुकेंगे हम

हम अपनी सांसों से तिरंगा लहरायेंगे

Category:Poem



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Written by Ankit Bhatt