पिछले कुछ समय से मथुरा और काशी के मुद्दे चर्चा में हैं, दोनों मामले अदालतों में चल रहे हैं। खास तौर पर ज्ञानवापी मस्जिद में मिली उन निशानियों को लेकर भी लगातार बहस हो रही है, जो इस ओर इशारा करती हैं कि इसका निर्माण मंदिर ध्वस्त करके किया गया था! इससे पूर्व भी कई मुगल कालीन इमारतों के विषय में भी इसी तरह के दावे किये जाते रहे हैं। इस सन्दर्भ में कुछ तथ्य भी दिये जाते रहे हैं।
यदि इतिहास पर दृष्टि डालें तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि मुगलों ने भारत पर आक्रमण किया था। उनके आक्रमण का उद्देश्य यहाँ की भूमि पर कब्ज़ा करके देश की अपार धन-सम्पदा को हासिल करना था। इसमें वो सफल भी रहे। इसके अतिरिक्त उनकी ये भी मंशा थी कि किसी भी प्रकार अपने मजहब को यहाँ के लोगों पर थोपा जाए। अपने मंसूबे कामयाब करने के लिए बदनीयती से उन्होंने अनेकों मंदिरों को ध्वस्त करके उनकी जगह पर मस्जिदों का निर्माण कराया।
लोगों को अपना मजहब अपनाने के लिए विवश किया, उन पर बेतहाशा जुल्म ढाये गए। और यदि फिर भी सफलता नहीं मिली तो फिर आज्ञा न मानने वालों की निर्मम हत्या भी की गई। ऐसा इसलिए किया गया कि बाकी लोग डर से इस्लाम कबूल कर लें और उनके विरोध का दुस्साहस न कर सकें। इसमें वो कुछ हद तक सफल भी रहे। ये सारे तथ्य इतिहास में दर्ज हैं। ये उन आक्रमणकारियों की ऐतिहासिक त्रुटि थी।
इसलिए यदि ये साबित हो जाता है कि ज्ञानवापी में मिला आकार शिवलिंग है या फिर इस बात के सबूत मिल जाते हैं कि ऐसे कई मंदिरों को ध्वस्त कर उन पर नया निर्माण किया गया तो इसमें आश्चर्यचकित होने की आवश्यकता नहीं है।
अब हमें समय की मांग को समझते हुए इस तरह के सभी विवादों का शांतिपूर्वक हल निकालना होगा। समय की मांग यही है कि पूर्व की त्रुटियों को स्वीकार करते हुए हम सभी मिलजुल कर ये तय करें कि इन विवादों का निबटारा कैसे किया जाए। अन्यथा कोर्ट पर निर्णय छोड़ दें। ताकि ऐसे विवादों में उलझ कर हम अपनी शक्ति व्यर्थ न करें और गरीबी, बेरोजगारी आदि मूलभूत समस्याओं से लड़ने पर फोकस कर सकें।
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