हिंदी भाषा की जितनी मांग है, इंटरनेट पर उतनी उपलब्धता नहीं है। लेकिन जिस रफ़्तार से भारत में इंटरनेट का विकास हुआ है उसी तरह से हिंदी भी इंटरनेट पर छा रही है। समाचारपत्र से लेकर हिंदी ब्लॉग तक अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है। साधुवाद तो गूगल को भी जाता है जिसने हिंदी में खोज करने की जगह उपलब्ध कराई। इतना ही नहीं विकिपीडिया ने भी हिंदी की महत्ता को समझते हुए कई सारी सामग्री का सॉफ्टवेयर अनुवाद हिंदी में प्रदान करना शुरू कर दिया जिससे हिंदी भाषी को किसी भी विषय की जानकरी सुलभ हुई। आजकल हिंदी भी इंटरनेट की एक अहम् लोकप्रिय भाषा बन कर उभरी है। मेरा मानना है जब लोग अपने विचार और लेखन हिंदी भाषा में इंटरनेट पर ज्यादा करेंगे तो वह दिन दूर नहीं की सारी सामग्री हिंदी में भी इंटरनेट पर मिलने लगेगी। इंटरनेट के युग में साहित्य की नई विधा ब्लॉग का अभ्युदय हुआ जिसके द्वारा काव्य एवं गद्य लेखन का प्रचलन बढ़ रहा है।
सोशल मीडिया ने प्रतिदिन लेखन की सुविधा दी है। इस प्लेटफार्म पर किसी भी विषय पर व्यक्ति अपनी राय व्यक्त करने के लिए आगे आ रहा है। बहुत अच्छी बात यही है कि फेसबुक प्लेटफार्म पर अधिकतर युवा सामने आने वाली पोस्ट को देखता है और उसे कुछ पढ़ते भी हैं। इस कारण कहा जा सकता है कि इसके माध्यम से युवाओं में नियमित पढ़ाई के प्रति रुझान बढ़ रहा है। यह तरीका भाषा को पुष्ट करने और शब्द ज्ञान बढ़ाने का काम भी कर रहा है। हिंदी के प्रति बढ़ते इस झुकाव के चलते हिंदी ने युवाओं के बीच गहरी पैठ बनाई है। अंग्रेजी बोलने वाले युवा भी हिंदी के प्रति आकर्षित होने लगे हैं। हिंदी भारत की संस्कृति है। हिंदी से जुड़ना मानो भारत से जुड़ना ही है। हिंदी ने भाषा, व्याकरण, साहित्य, कला, संगीत के सभी माध्यमों में अपनी उपयोगिता, प्रासंगिकता एवं वर्चस्व कायम किया है। हिंदी की यह स्थिति हिंदी भाषियों और हिंदी समाज की देन है। लेकिन हिंदी भाषा समाज का एक तबका हिंदी की दुर्गति के लिए भी जिम्मेदार है। अंग्रेजी बोलने वाला ज्यादा ज्ञानी और बुद्धिजीवी होता है। यह धारणा हिंदी भाषियों में हीन भावना लाती है। जिंदगी में सफलता पाने के लिये हर कोई अंग्रेजी भाषा को बोलना और सीखना चाहता है। हिंदी भाषी लोगों को इस हीन भावना से उबरना होगा, क्योंकि मौलिक विचार मातृभाषा में ही आते हैं।
जहां तक राष्ट्रीयता का सवाल आता है तो हर देश की पहचान उसकी भाषा भी होती है। हिंदी हमारी राष्ट्रीय पहचान है। दक्षिण के राज्यों के नागरिकों की प्रादेशिक पहचान के रूप में उनकी अपनी भाषा हो सकती है, लेकिन राष्ट्रीय पहचान की बात की जाए तो वह केवल हिंदी ही हो सकती है। हालांकि आज दक्षिण के राज्यों में हिंदी को जानने और बोलने की उत्सुकता बढ़ी है, जो उनके राष्ट्रीय होने को प्रमाणित करता है। आज पूरा भारत राष्ट्रीय भाव की तरफ कदम बढ़ा रहा है। हिंदी के प्रति प्रेम प्रदर्शित हो रहा है।
आज हमें इस बात पर भी मंथन करना चाहिए कि भारत में हिंदी दिवस मनाने की आवश्यकता क्यों पड़ रही है। भारत में अंग्रेजी दिवस और उर्दू दिवस क्यों नहीं मनाया जाता। इसके पीछे यूं तो कई कारण हैं, लेकिन वर्तमान का अध्ययन किया जाए तो यही परिलक्षित होता है कि आज हम स्वयं ही हिंदी के शब्दों की हत्या करने पर उतारू हो गए हैं। ध्यान रखना होगा कि आज जिस प्रकार से हिंदी के शब्दों की हत्या हो रही है, कल पूरी हिंदी भाषा की भी हत्या हो सकती है। हम विचार करें कि हिंदी भारत के स्वर्णिम अतीत का हिस्सा है। हिंदी हमारी संस्कृति का हिस्सा है। ऐसा हम अंग्रेजी के बारे में कदापि नहीं बोल सकते।
आज हिंदी को पहले की भांति वैश्विक धरातल प्राप्त हो रहा है। विश्व के कई देशों में हिंदी के प्रति आकर्षण का आत्मीय भाव संचरित हुआ है। वे भारत के बारे में गहराई से अध्ययन करना चाह रहे हैं। विश्व के कई प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में हिंदी के पाठ्यक्रम संचालित किए जाने लगे हैं। विश्व के कई देशों के नागरिक हिंदी के प्रति अनुराग दिखा रहे हैं। इतना ही नहीं आज विश्व के कई देशों में हिंदी के संस्करण प्रकाशित हो रहे हैं। जो वैश्विक स्तर पर हिंदी की समृद्धि का प्रकाश फैला रहे हैं। भारत के साथ ही सूरीनाम फिजी, त्रिनिदाद, गुआना, मॉरीशस, थाईलैंड व सिंगापुर में भी हिंदी वहां की राजभाषा या सह राजभाषा के रूप में मान्यता प्राप्त कर चुकी है। इतना ही नहीं आबूधाबी में भी हिंदी को तीसरी आधिकारिक भाषा की मान्यता मिल चुकी है। आज विश्व के लगभग 44 ऐसे देश हैं जहां हिंदी बोलने का प्रचलन बढ़ रहा है। सवाल यह है कि जब हिंदी की वैश्विक स्वीकार्यता बढ़ रही है, तब हम अंग्रेजी के पीछे क्यों भाग रहे हैं। हम अपने आपको भुलाने की दिशा में कदम क्यों बढ़ा रहे हैं। हिंदी विविध भारत को एकता के सूत्र में पिरोने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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