हिमालय की चिंघाड़
ज्योतिर्मठ की दरारे महज दरारे नहीं है
हिमालय और धरती का भीषण रुदन है
भगवन शंकराचार्य की उध्वस्त होती
तपोभूमि का क्रंदन और आक्रंदन है
आज मुझे घिरघिरकर याद हो रही है
विलुप्त हो चुकी उस मैया सरस्वती की
जो कभी गंगा सी कलकल बहती थी
तट पर तरुदल के वैभव में रहती थी
उसी के तट पर जन्मी थी सनातन सभ्यता
जाने कितनी लहराती थी औषधिया तरुलता
काल के गाल समा गयी प्रिय तटिनी सरस्वता
बार बार जेहन में उठ रही है प्रश्न की ये खता
क्या अब हिमालय और गंगा की बारी है ?
क्योकि दसोदिशाओ में तो प्रगति हमारी है
तरक्की के चलते हिमालय पर्यटन हो गया
इतनी तरक्की हुयी की तीर्थाटन पट गया
मित्रो ! हिमालय की दरारों को समझना होगा
हिमालय छुट्टिया मनाने का प्रदेश नहीं है
रील बनाने , फोटो शूट का परिवेश नहीं है
वह हमारी प्राचीन सभ्यता की तपोभूमि है
सन्यस्त जीवन की दिव्य हमारी देवभूमि है
हिमालय असभ्यता की ऐशगाह भी नहीं है
ना ही बाप हिमालय चरवाहों की चरगाह है
वो दिव्य तपोभूमि है रे ! कोई भी मत जाना वहा
जाकर उत्श्रृंखल क्रिया-कलाप कभी मत करना वहा
हिमालय ट्रेकिंग या ,बोटिंग करने की स्थान नहीं
वहा तो मन शांति ढूंढने के लिए जाया करते है
अपना परलोक सुधारने के लिए जाया करते है
सन्यस्त जीवन पाने वहा यात्रा किया करते है
नींद से जाग उठो हिमालय का दोहन करनेवालों !
हिमालय हमारे ज्वलंत आस्तित्व का प्रश्न है
मोक्षदायिनी गंगा हमारी सभ्यता का जश्न है
गंगाजल अमृत है , बिजली का कच्चा माल नहीं
हिमालय अवधूत है , पैसा कमाने का जंजाल नहीं
पहाडो का विकास, विकास नहीं, बनाना भकास है
पहाडो को यथावत रहने दो , वे तीर्थ है हमारे
नदियों को कलकल बहने दो वे शीर्ष है हमारे
प्रकृति की तुम और आधिक परीक्षा मत लेना
अपने अपराधियों को वह छोडती तनिक नहीं है .
संजीव एस आहिरे
नाशिक (महाराष्ट्र )
संपर्क - ९१३०७ ४९९८०
मेल - [email protected]
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