खमयाज़ा जिन्दगी का यूं ही गुज़र जायेगा।
ज़रूर कोई माज़ी रही होगी सालिम ए माह की
वर्ना यूं ही किसी को दाग़ ए माह नज़र ना आयेगा।
वो भी क्या पल थे
हम कोई खता करते सब तब्बसुम ए लब होते
अब कोई शरारत भी करू तो सबका रवईया बदल जायेगा।
बरसों से करती रही माही खाहिश ए मोहब्बत भरी नज़र की
नज़र जो आया अक्स ए मोहब्बत का ख़ैर वो भी चला जायेगा।
माही ✍️
0 Followers
0 Following