कभी कभी जिंदगी की भागदौड़ में इंसान इतना उलझ जाता है कि वो जिनलोगो के लिए भागदौड़ करता है उनके लिए ही समय नही निकाल पाता है और जिंदगी में कुछ पाने या कुछ बनने के चक्कर में इतना उलझ जाता है की जब तक वो सफल होता है तब तक उन लोगो को ही खो देता है जिनके लिया वो कुछ बनने निकला था। फिर उसे अहसास होता है की जिंदगी जो कुछ उसने कमाया है वो उन लोगो के सामने कुछ भी नही जिनको उसने खो दिया, इसलिए जिंदगी में हमेशा उन रिश्तों को प्राथमिकता देना चाहिए जिनसे हम जुड़े हुए हैं, बाकी सब काम धंधे, पढ़ाई नोकरी खोना पाना ये सब तो जिंदगी भर चलते रहना है ।
मेने जब पिछले महीने मेरे पिताजी को खोया तो लगभग 1 महीना गांव में रुका तब मुझे अहसास हुआ कि पिछले 10 साल में जब से में शहर गया हु 2 या 3 दिन से ज्यादा कभी नही रुका वो भी 2-3 महीने में एक बार और ये बात कभी दिमाग में ही नही आई कि में धीरे धीरे उनको खो रहा हूं और एक दिन अचानक वो इतने दूर चले जायेंगे की फिर मैं सारा दिन फ्री बैठा रहूंगा लेकिन उनसे मिल नही पाऊंगा। आज फादर्स डे है तो ऐसे उनके बारे में सोचते हुए कुछ लिखा है जो पेश कर रहा हु.....
बंदिशे ही कुछ ऐसी लगा रखी है
मर्द के नाम पे जमाने ने,
के सौ दर्द मिले जिंदगी में
पर कभी रो न पाए,
पर जब छुट्टा साथ उस हाथ का,जौ सर पे था,
चाह के भी आंसुओ का सैलाब रोक न पाए ।
बुलाते रहे अक्सर वो अपने पास
पर कभी 2 घड़ी निकाल ही ना पाए,
अब रोते हैं उनको याद करके,
पर रोने से भला कोई कहा लौट के आए।
दिया ही नही कभी इल्जाम हमको,
बस डटे रहे मजबूती से अपनी बेबसी छिपाए,
निकले थे कमाने, पर सोचता हु क्या कमाए?
की जिन्होंने जिंदगी दी उनके साथ ही ना जी पाए।।
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