वीभत्स रस

मौत

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17 May '24
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हां मुरझा गया वो गुलाब जो कल तक खुशबू के लिए जाना जाता था ..

हां मर गई वो उम्मीदें जो कल तक एहसासों के लिए जानी जाती थी..

अकेली हूं आस पास शमशान है ..

राख बिखरी पड़ी है देखो 

लोग दिख रहे है आस पास है ना

ये सिर्फ लोग है 

चिता जलाने आए है मेरी…

अकेली हूं..

लोग है ना

ये सिर्फ लोग है।

मैं अकेली ही..

ये सब है ना मेरी मौत का तमाशा देखने आए है 

अकेली हूं मैं,बाहर आस पास मेरे दोस्त है ना 

ये सब मेरा जनाजा उठाने आए है 

मैं अकेली हूं पूरी दुनिया वाले मेरा मजाक उड़ाने आए है 

मैं अकेली ही पर तुझे साथ लेने आई हूं.

मेरी मौत का तांडव तेरी मृत्यु का इश्तहार छपवाने आई हूं

मैं अकेली ही पर तुझे साथ लेने आई हूं

             —दिव्या “जीव”✍️

Category:Poetry



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Written by Divya Bisht

लेखिका...student