देश में अब कुछ अजीब सा खेल हो रहा है,
कमीनो और जमीनों के भाव में इजाफा हो रहा है।
जहां पहले थी सच्चाई और ईमानदारी का दोर,
अब हर तरफ धोखा और चालाकी का शोर हो रहा है।
बाजार में देखो, कैसे कीमतें बढ़ रही हैं,
हर जगह सपनों की बस्तियों में धोखा हो रहा है।
जमीन जो कभी सबकी थी, अब अमीरों का हक हो रहा,
अब इसमें भी बेईमानी का खेल हो रहा है।
सोचता हूँ, कहां गया वो सच्चा भरोसा,
जो था हमारे बड़े-बुजुर्गों का हिस्सा।
अब तो हर जगह धोखाधड़ी और छल,
जिससे देश का भविष्य न जाने क्या हो रहा।
संभल जाओ, ओ यारो , ये वक्त की पुकार है,
कमीनों और जमीनों का खेल बड़ा गहरा हो रहा है।
मिलकर हमें बदलना है इस दौर का चलन,
ताकि फिर से देश में ईमानदारी का दीप जल रहे ।
भाईचारा, न्याय और सच्चाई का हो हर तरफ उजाला,
फिर से हमारे देश में खुशहाली का राज हो रहा।
देश में, कमीनो तथा जमीनों के भाव का गिरना,
यही हो हमारी सोच और यही हो हमारा सपना।
लेखक सम्पादत साप्ताहिक समाचार थीम
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