जब भारत और भारतवासी के बुद्धि और बल का लोप हुआ,
तब गोरों का भारत में धीरे-धीरे अधिकार हुआ।
जनता का लहू पीने को, वो व्यवसाय किया, व्यापार किया।
थे दुखद दासता के बंधन, उस पर यह अत्याचार किया।
भारत मांँ के खातिर वो वीरों,दर्द भी अपना भूल गए।
मातृभूमि की आन में, वो मुस्कान लपेट कर झूल गए।
प्राणों की आहुति देकर जो करते हैं भारत का वंदन !
हम आभारी हैं उनके और करते हैं उनका अभिनंदन !
कैसे भूलें उन पंँक्तियों को जिसने, स्वाधीनता के लौ सुलगाए थे।
कवियों के इक-इक शब्द ने शत-शत जन को संग्राम में अगुवाए थे।
आंँखों में ख़ून के छींटे थे, धधक उठी अंतर ज्वालाएं।
वीर तो थे तन्मय रण में, कूद आयीं अब बालाएंँ।
ख़ून के इस होली में रंग फिंका हुआ लिबाजों का।
क्या हिंदू-मुस्लिम, क्या सिख-ईसाई, दुरंगी का नाम मिटा
सब दिए आहुति प्राणों का।
कलम के बल कि झोंक से जो करते हैं वीरों का क्रंदन!
हम आभारी हैं उनके और करते हैं उनका अभिनंदन!
मत रटना ए देश के वीरों केवल चरखे ने हमे आजाद किया।
कोई बंदूक तान कर खड़े रहे, कोई कलम से रण में भाग लिया
फिर उस बूढ़े तापस के तप ने हमें आजाद किया।
वीरों के साहस और बल देख, गोरों के सिंहासन डोल उठे।
बह रही थी जब ख़ून की नदियांँ, साहित्य भी तब बोल उठे।
कलम को अपना शस्त्र बना,वो भी संग्राम में कूद पड़े।
जो ना जा पाए कभी रण पे, वो कलमों से ही खूब लड़े।
भारत के हर वैरी का जो भी करते हैं निकंदन!
हम आभारी हैं उनके और करते हैं उनका अभिनंदन!
दहकी हर ओर क्रांति ज्वाला, चहुँ ओर शोर था फैल गया।
गोरों की परछाई भी भारत को अब छोड़ गया।
ये धरती आजाद हुई, नभ भी ये आजाद हुआ।।
ये नदियांँ भी आजाद हुई, खग विहग आजाद हुआ।
काली बेड़ियांँ तोड़कर मानो सारा जीव आजाद हुआ।
वीरों की सांसों में लिपटे, वो तिरंगा भी आजाद हुआ।
अदम्य साहस और बल मिलकर, बने हैं हर भारतनंदन!
हम आभारी हैं उनके और करते हैं उनका अभिनंदन!
आजादी का यह संग्राम, हम कभी भूल न पाएंगे।
स्वर्णाक्षर में वर्णित यह दिन, अजर अमर हो जाएंगे।
भारत को विजय मिली रण में, सब खुशी से नाच उठा।
तब शंखनाद के मधुर ध्वनि से पूरा भारत गूंँज उठा।
उत्साहित हो भारतीय भारत का जय-जयकार किया।
कवियों के पावन मुख ने भारत का मंगल गान किया।
प्राणों की आहुति देकर जो करते हैं भारत का वंदन !
हम आभारी हैं उनके और करते हैं उनका अभिनंदन !
-शुभम वत्स
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