वो जब मैं छोटी थी न
देखा करती थी सबकुछ
नन्ही आँखों से …
सुनो कहानी अब मेरी ज़ुबानी
कुछ बचपन की बातें
कुछ यादें पुरानी |
खेलते थे आँगन में फुन्दी का फटाका
चिप्पस , पकडनी और बर्फ पानी
छुपन्न छुपाई में बीता था बचपन
कहीं खो गया वो सुनहरा सा बचपन
वो दादी नानी से कहानी का सुनना
वो घर घर की कहानी पे लड़ना झगड़ना
वो बारिश के पानी में कश्ती चलाना
वो बाघों में पेड़ो से केरी चुराना
जब चेनल लगाने पे होती लड़ाई
जब कहते थे हम , तूने एक टॉफी
ज्यादा कैसे खाई ?
तभी माँ मेरी हाथ में चप्पल ले आती थी
और लड़ाई सारी वही धरी रह जाती थी |
वो फ्राके पहनकर चिड़िया सा चहकना
वो ऊँगली पकड़कर गली पार करना
वो ज़ोरो से रोने की धमकी देना
वो घर जल्दी चलने की जिद्दी पकड़ना
जब पानी भा होता था
और भूक , भूका हुआ करती थी
तब नींद भी हमारी निन्ना
हुआ करती थी |
सुनी ये कहानी , तुमने मेरी ज़ुबानी
चलो अब सुना दो तुम अपनी कहानी |
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