रब

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01 Jun '24
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रब की रजा

     रब

रब सब का हैं

फिर ये फर्क क्यों ?

कोई अर्श पर तो

कोई फर्श पर क्यों ?

हर शख़्स खुद से

ना उम्मीद सा क्यों है ?

दुआ में उठते है हाथ कई पर

क़बूलियत का समय

किसी एक का क्यों है ?

जो रमता है हर जगह फिर भी

क्यों ढूँढे हैं उसे जर्रे-जर्रे में

सुना है रब मन में बसता है

खुद से रूबरू हो जाओं

फिर वो तुझसे ही वाबस्ता हैं ।।


 

                                                  स्नेह ज्योति

Category:Poetry



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Written by Snehjyoti Chaprana

कभी आंसमा में ढूँढता हैं कभी सपनों में खोजता हैं यें दिल हर पल ना जाने क्या-क्या सोचता है भीड़ मे तन्हाई में अपने को ही खोजता हैं

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