गजल

जख्म

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23 May '24
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कौन अछूता जख्म सभी आघात से रखने पड़ते है

उजियारे को भी कुछ रिश्ते रात से रखने पड़ते है


 

मोन मुखर हो तो शब्दो का कोई मोल नही होता पर

चुप को भी तो कितने नाते बात से रखने पड़ते है


 

देह अकेली कैसे जाए वरने साँसों की दुल्हन

उसको अपने संग साये बारात से रखने पड़ते है


 

दौर बनावट का है प्यारे सब ही बुनावट भूल गए

बच्चों को भी ज्यादा तर औकात से रखने पड़ते है


 

कौन घड़ी ना जाने लब्ज बने ओर छलके लब पर

मुझको मेरे दर्द बड़े अहतियात से रखने पड़ते है


 

राते जब जब बौ जाती है कुछ सपने मन कि क्यारी में

तब आँखों के मौसम भी बरसात से रखने पड़ते है


 

दुनियाँ की शतरंज निराली सब अपने पर दामन खाली

इसमें सब राजे प्यादे इक जात से रखने पड़ते है


 

जीने की ख्वाइश भी है मरने का अंदाज भी जीवन

वक्त से पाये पल हमको सौगात से रखने पड़ते है


 

रिश्तों ने भी अब तो समझो उड़ना सीखा पंख लगा कर

कस के मुठ्ठी उनको भी जज्बात से रखने पड़ते है


 

रोना धोना जीवन का इक पल में तमाशा बन जाता है

मुस्कानों से मथ आँसू हालात से रखने पड़ते है


 

माना की मिट ही जाना है फिर भी संभाले फिरते है

अस्थि के पिंजर ये हमको गात से रखने पड़ते है



 

मुकेश सोनी सार्थक




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Written by Mukesh Soni

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