सुंदर सुखद घड़ी का स्वागत
बही बयार सरर सर-सर-सर ।
आग लगाकर दूर जमालो
खड़ी ताकती है मुसकाकर ।।
धू-धू जल उठे मकान सभी
पर अभिलाषा अवशेष अभी
क्रन्दन करते आबालवृद्ध
चीखते दीखते नारी-नर ।
आग लगाकर दूर जमालो
खड़ी ताकती है मुसकाकर।।
सुन त्राहिमाम का तीक्ष्ण शोर
हैं आर्द्र सभी के नयन कोर
भूखे बच्चे बिललाते हैं
बूढ़े रोते आहें भर-भर ।
आग लगाकर दूर जमालो
खड़ी ताकती है मुसकाकर।।
आ गई पुलिस फिर शुरू जांच
रोए जो झुलसे, सही आंच
बेखबर जमालो बनी रही
जब अखबारों में छपी खबर ।
आग लगाकर दूर जमालो
खड़ी ताकती है मुसकाकर।।
जमालो जब करवाती द्वन्द
तभी मिलता उसको आनन्द
षड्यंत्र अनित्य सृजित करती
सुख अर्जित करती है दर-दर ।
आग लगाकर दूर जमालो
खड़ी ताकती है मुसकाकर।।
बात की मुंह में लम्पकडोर
गवाही देती सबकी ओर
मजे से चाय-नाश्ता नित्य
किया करती है वह घर-घर ।
आग लगाकर दूर जमालो
खड़ी ताकती है मुसकाकर ।।
@ महेश चन्द्र त्रिपाठी
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