अजीब रात

दो पुराने प्रेमी जोड़े जब एक रात मिलते है.

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21 Jun '24
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सूरज की किरणें खिड़की के शीशे को भेदते हुए उसके हल्के गुलाबी चेहरे पर पड़ रही थीं। उसका चेहरा गुलाबी धूप में और खिल रहा था। मैंने उसे फिर से चूमना चाहा, मगर मैं रुक गया। दूर से उसकी रंगत को देखने लगा। मुझे उसे यूं सोते हुए देखना बहुत सुंदर लग रहा था। कल रात वो आई थी हताश और परेशान। मैं उसे देखकर चौंक गया था। भीतर ही भीतर बहुत खुश भी था। उसने आते ही कहा कि मैं आज रात तुम्हारे यहाँ रुकने आई हूँ। मेरे मुँह से निकला क्यों? फिर मुझे लगा ये अजीब सवाल है, मैंने कहा क्यों नहीं, तुम्हारा ही घर है, तुम जब तक चाहो रुक सकती हो। वो थकी हुई थी, तो वह चुपचाप बेड पर लेट गई और आँखें खोले टकटकी लगाए एक ही जगह देख रही थी। शायद उसके दिमाग में बहुत सारे सवाल दौड़ रहे थे।

मैंने रात को उसके लिए पिज़्ज़ा और पास्ता ऑर्डर किया। वो खाते वक्त चुप थी। मैं उससे बहुत से सवाल करना चाहता था, लेकिन मुझे लगा ये ठीक वक्त नहीं है। और वैसे भी मुझे उसकी आदत का  पता है, वो कभी भी मेरे पूछने पर कुछ भी नहीं बताती है। उसे जब कुछ बताना होता है, तभी वो कुछ कहती है। वो थोड़ा बहुत खाकर लेटने चली गई। हमारे बीच कोई बात नहीं हुई। मैंने अपना बिस्तर बेड के पास वाली बची जगह पर नीचे लगा लिया। उसने कहा, "तुम नीचे लेटोगे?" मैंने हाँ में सर हिला कर लेटने लगा। उसने कहा, "नहीं, तुम ऊपर लेट जाओ, मैं नीचे।" मैंने मना कर दिया। बहुत देर तक ऊपर-नीचे का किस्सा चलता रहा, लेकिन अंत तक मैं नीचे लेटने पर टिका रहा। मैं लेट गया, वो भी लेट गई। दोनों चुप थे। मैंने कहा, "लाइट बंद कर दूं?" उसने हाँ कहा और लाइट बंद करके मैं सोने की कोशिश करने लगा । तभी उसने कहा, “मैं तुम्हें कैसी लगती हूँ?”

सवाल सुनते ही मेरी आंखें खुल गईं और मैं हल्का सा उठा। “मतलब?” मैंने सवाल की समीक्षा करनी चाही। “मतलब यही कि मैं कैसी लगती हूँ, DO YOU LIKE ME?” मेरी नींद उड़ चुकी थी और मैं उठ कर बैठ गया । और मैंने कहा “यह कितना अजीब सवाल है। और अब इन सवालों के क्या मतलब?” वह भी  उठकर बैठ गई, और मेरी तरफ  अपना सिर लटका कर  मुझे देखने लगी। “अरे, मुझे पता है तुम कॉलेज के दिनों में मुझसे प्यार करते थे और यह बात सबको पता है। तो ऐसे ही पूछा कि इतने सालों बाद भी तुम मुझसे प्यार करते हो?” बात बहुत गंभीर हो चली थी, सिर्फ मेरी तरफ से; उसकी तरफ से शायद सब कुछ सामान्य था। “मुझे नहीं पता अब।” वह बिस्तर से उतर कर नीचे आ गई और मेरे पास लेट गई। “क्यों, अब तू मुझे पसंद नहीं करता क्या?” वह मेरे इतनी करीब आ गई थी कि मेरी धड़कनें बढ़ चुकी थीं। मेरे मुँह से शब्द नहीं निकल रहे थे, बहुत मुश्किल से एक शब्द निकला, “हाँ, पसंद हो तुम।” वह मेरे और करीब आ गई। “कितनी पसंद हूँ?” उसकी साँसें मेरे चेहरे पर टकरा रही थीं, मैं हकलाने लगा, “बहुत पसंद हो।” वह मेरे और करीब आई, उसका सीना मेरे सीने से टकरा रहा था। “बहुत कितना?” अब मैं चुप हो गया था, मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, धड़कन तेजी से बढ़ रही थी। उसने फिर मेरे होंठों से अपने होंठ मिला दिए। मैं उसके साथ उसी खेल में शामिल हो चुका था, बहुत देर तक हम यूँ ही किस करते रहे और फिर वह अलग हुई। थोड़ी देर अलग होने के बाद वो मेरे गले से लग गयी और फिर से हम दोनों एक दुसरे को चूमने लगे ये प्रक्रिया बहुत देर तक चली. मैं उसके बदन की खुसबू में खो चूका था और हम एक दुसरे को पागलो के तरह प्यार कर रहे थे. थोड़ी देर बाद हम अलग हुए. 

अंधेरे की वजह से हम एक दूसरे का चेहरा नहीं देख पा रहे थे। वह शांत थी, उसने फिर कहना शुरू किया, “मैंने उसे छोड़ दिया है।” मैं शांत रहा, कुछ भी कह पाने की हिम्मत नहीं थी। थोड़ी देर के बाद…

उसने फिर कहना शुरू किया “वो वैसा नहीं है जैसा दिखा करता था। शादी के बाद वो बदल गया है, हर रोज ऑफिस का गुस्सा मुझ पर उतारता है। उसकी सिसकियाँ बाँध गयी थीं। मैं फिर से चुप रहा, मुझे सब सुनना था और शांत रहकर मैं वही कर रहा था। “उसने कई बार मुझ पर हाथ भी उठाया है," उसकी सिसकियाँ तेज़ हो गयी थीं। "अब हमारे बीच कुछ भी ठीक नहीं चल रहा, मैं उस घर में घुटन भरी ज़िंदगी जी रही हूँ।” उसका रोना तेज़ हो चुका था। मैंने आहिस्ता से उसके कंधों पर हाथ रखा और फिर उसे हिम्मत देते हुए कहा, “तुम चिंता मत करो, सब ठीक हो जाएगा।” उसने आँसू पोंछे और कहा, “कुछ ठीक नहीं होगा शादाब, मैं अब नहीं जीना चाहती, सच में।” मेरे पास कोई शब्द नहीं थे, मैं बस उसे सहानुभूति देने की कोशिश कर रहा था। “तुम उसे तलाक क्यों नहीं दे देती?” उसने कहा, “नहीं, ऐसा नहीं कर सकती। मैं अपने माँ-बाप पर बोझ नहीं बन सकती।” उसका रोना हल्का हो गया था। सब कुछ बिल्कुल शांत था। मैंने उसे ऊपर लेट कर सो जाने के लिए कहा। वो ऊपर लेट गई और मैं नीचे लेटने लगा। तभी उसने कहा, “तुम नीचे मत लेटो, प्लीज़ तुम ऊपर लेट जाओ न," उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और अपने पास लिटा लिया। “पता है तुम बहुत अच्छे लड़के हो। जब मैं तुम्हारी दोस्त थी तो मुझे याद है, तुम्हारी वजह से मुझे कभी कोई तकलीफ नहीं हुई। तुम सच में बेस्ट थे...” मैं कुछ भी जवाब नहीं देना चाहता था। शायद मेरे पास कोई जवाब था ही नहीं। मैं करवट बदलकर सोने की कोशिश करने लगा। मेरी आँखों के सामने मेरा सारा बीता हुआ कल मंडरा रहा था। मैं पूरी रात अपने उन कॉलेज के दिनों को सोचते हुए सो गया।

मैं उसे देख ही रहा था तभी वह उठ गई। मैं उसके लिए नाश्ते में ब्रेड ऑमलेट बनाने चला गया। ब्रेकफास्ट की टेबल तक हम चुप रहे। मैंने खामोशी तोड़ते हुए पूछा, "ऑमलेट कैसा बना है?" उसने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, "बहुत यम्मी।" फिर मैंने उससे अगला सवाल किया, "तो आगे का क्या सोचा है?" वह मेरे सवाल को सुनकर थोड़ी देर रुकी और कॉफी का एक घूंट पीते हुए कहा, "कुछ नहीं सोचा।" मैं भी चुप रहा। मैं कुछ भी गलत कहने से डर रहा था। उसने ब्रेकफास्ट करने के बाद कहा, "अब मैं घर जाना चाहती हूँ, तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया इतना सब कुछ करने के लिए।" उसने मुझे गले से लगा लिया। मैं हक्का-बक्का रह गया, मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या कहूँ। मैं उसे रोक लेना चाहता था। मैं कहना चाहता था, "वह बुरा है, मत जाओ, यहीं रुक जाओ," मगर मैं कुछ न कह सका। कुछ देर बाद वह चली गई। उसने कहा था वह अब नहीं आएगी।

Category:Relationships



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Written by Mohd Shadab

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