तेरे शहर से

बारिश

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07 Jul '24
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उस साल की आखरी बारिश थी वो 

दिन ठीक से याद नहीं, पर ये याद है कि तीन दिन से 

तुम्हारे शहर में धूप नहीं निकली थी 

सारे आटो वाले स्टेशन तक छोड़ने से मना कर चुके थे

एक आटो वाले भैया ने तरस खाकर शायद हामी भरी थी 

दौड़ते भागते अपने सालों के लगेज को उठाये पहुंची थी 

बगल में रखा था वो बक्सा जिसमें दफन थे वो सारे अल्फाज

जो उसे कहने थे आखरी मुलाकात में 


 

जब वो बारिश में भीगती हुई खड़ी थी तुम्हारे घर के 

पास वाली कोस्मेटिक्स की दुकान के बाहर 

जिसके बाद से टेन्ट लगा हुआ था तुम्हारे घर तक 

तुम्हारे संगीत का जो ठिठुर रहा था उसकी तरह 

तुमने इशारों में पास वाले टी हाउस में आने को कहा था

जिसमें घुसने के पहले ही तुम्हारे शब्द थे 

हां, मैं नहीं बता पाया तुम्हें सब कुछ बहुत जल्दी में हुआ 

आज संगीत है मेरा माफ कर दो 

स्तब्ध खड़ी थी वो, शब्द क्या आंसू तक नहीं निकले थे 

तुमने उसके कंधों पर अपने दोनों हाथ रखकर कहा था 

"तूने कहा था ना, तू बाकियों जैसी नहीं है 

मजबूरी है मेरी , आज साथ चाहिये तेरा " 


 

वो जानती थी तुम क्या कह रहे हो 

तुम्हारे ताऊ जी, उसे तुमसे पहले नजर आ गये थे 

जल्दी घबरा जाते हो तुम ये भी जानती थी 

उसने कोशिश की थी मुस्कुराने की 

जब गलती से आंसू छलक गये थे 

उसने कहा " मैंने बेस लोकेशन पुणे चुनी है 

तीन दिन में ज्वाइनिंग है फिक्र मत करो खुश रहना " 

कहते ही चली गयी थी वो बिना एक बार भी पीछे देखे 

बहुत कुछ कहना था तुमसे पर तुम्हारे चेहरे से उस दिन 

जो हमारे एक ना हो पाने की तड़प गायब थी ना 

उसने सारे अल्फाजो का गला घोंट दिया था 

उन आखरी अल्फाजो का लगेज उठाये 

उस शाम अलविदा कहा था तेरे शहर को

आज सालों बाद  उन्हीं के सहारे लौटी है वो

उन्हें बसाने तेरे शहर में मुंबई मे 


 

- तेरे शहर से ✍✍✍

Category:Stories



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Written by vishvash gaur

हम हमेशा पृथ्वी के दो ध्रुवों की तरह रहे एक दूसरे से बिल्कुल विपरीत जो कभी मिल नही सकते पर उनका होना जरूरी है संतुलन के लिए कभी मांगा ही नही एक दूसरे को एक दूसरे से ना ही ईश्वर से अब वो ही जाने उसने क्यों हमें एक दूसरे के इतना समांतर रख दिया जो साथ चल तो सकते हैं पर हाथ थाम कर नहीं