फोकट की नभयात्रा

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06 Jun '24
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फोकट की नभयात्रा, करते लगे न देर।

गजलों में हैं घूमते, भाँति भाँति के शेर।।

भाँति भाँति के शेर, दिखें कविता कानन में।

भाँति भाँति से भक्त, भजें ईश्वर को मन में।।

कवि की कविता नहीं, धृष्टता नर मर्कट की।

मित्र मनाएँ मौज, कवि कला लख फोकट की।।

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फोकट की नभयात्रा, गगन-सहचरी संग।

रोम-रोम पुलकित रहा, रोमांचित हर अंग।।

रोमांचित हर अंग, अंग की याद न आई।

गगन-सहचरी संग, भूल ही गई लुगाई।।

बसा हृदय में चित्र, मित्र सब गए भाड़ में।

फिर-फिर हो संयोग, निरन्तर निरत ताड़ में।।

 

महेश चन्द्र त्रिपाठी 

Category:Poem



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Written by Mahesh Chandra Tripathi

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