लगी आग दिल मे
न इसको बुझाना
कि जाम आखिरी है
किसी ने न जाना
था मुश्किल बहुत
अपने दिल को समझाना
कि शाम आखिरी है
किसी ने न जाना
लगा तीर दिल पे
न चूका निशाना
कि कफ़न आखिरी है
किसी ने न जाना
ठोकर लगी हमने
तब जाके माना
कि गम आखिरी है
किसी ने न जाना
जिंदगी का मेरी
ये कैसा फसाना
कि सफर आखिरी है
किसी ने न जाना
पं संजय शर्मा "आक्रोश"