"क्यों तुम जिंदगी की,
जंग गए हार?
क्यों तुमने छोड़ दिया,
यूँ मेरा साथ?
तुम नहीं हो फिर भी,
तलाशता हूँ,
तुम्हारे साथ,
होने का अहसास,
ढूंढते हैं तुमको,
हम अब भी,
फीकी-फीकी सी,
चाय की चुस्कियों में,
ढूंढते हैं तुमको,
हम अब भी,
दिन-रात बजती,
फोन की घण्टियों में,
ढूंढते हैं तुमको,
हम अब भी,
अपनी यादों की,
गलियों में,
ढूंढते हैं तुमको,
हम अब भी,
अपने दिल की,
वादियों में,
ढूंढते हैं तुमको,
हम अब भी,
वक्त बेवक्त पर,
आती हिचकियों में,
ढूंढते हैं तुमको,
हम अब भी,
तुम्हारी याद में,
आती सिसकियों में।"
-काफ़िर चंदौसवी
writer, poet and blogger
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