बदले हैं युग, बदला बहुत कुछ,
किन्तु नही बदले, नारियों के हालात,
यूँ तो कहते हैं, हम देवियाँ इनको,
सच में मानने को, इंसान भी नही तैयार,
परायों की तो, बात ही छोड़िये,
अपने ही देते हैं, इन्हें गहरे आघात,
माँ, बहिन, बेटी, पत्नी, मित्र या भाभी,
हर रिश्ते में ही, नारियों पर होते अत्याचार।
सिर्फ कलयुग में ही, ऐसा होता है,
सत्य नही है, मिथ्या है ये बात,
आदिकाल से ही, ये होता आया है,
आधुनिक युग हो, या हो रामराज्य,
वही कहानी ही, दोहराई गयी है,
बदले हैं तो, बस पीड़ित पात्र।
आदिकाल में भी, शिव पत्नी सती का,
स्वयं पिता दक्ष ने, किया घोर अपमान,
इस घटना से, क्षुब्ध होने के कारण,
अग्नि में कूद, त्याग दिए सती ने प्राण।
इसी प्रकार से, निर्दोष अहिल्या को भी,
पति गौतम ने दिया, शिला बनने का श्राप,
दोष तो था, देवराज इंद्र का,
किन्तु सहना पड़ा, अहिल्या को ये अभिशाप,
बन कर के, एक पाषाण मूर्ति,
बिताया अहिल्या ने, एक लम्बा अंतराल,
वनवास के दौरान, जब शिला को छुआ राम ने,
तब श्रापमुक्त हो, हुआ अहिल्या का उद्धार।
अहिल्या का उद्धार, करने वाले राम ने,
कब किया था, स्वयं पत्नी सीता से न्याय,
माना रावण ने किया था, सीता हरण करके बुरा काम,
किन्तु स्वयं भी अच्छा उदाहरण, कहाँ प्रस्तुत कर सके राम,
अपनी पवित्रता दर्शाने को, सीता हुई अग्नि परीक्षा को बाध्य,
फिर भी झूठे आरोपों पर, राम ने किया उनका त्याग,
सारे सुख वैभव छोड़कर, जो पत्नी गई वनवास में साथ,
उस निर्दोष सीता का, राम ने किया राज्य हेतु त्याग,
रानी होने के नाते, थीं जो हर सुख वैभव की हकदार,
उस सीता का बिता जीवन, तन्हाई और पीड़ा के साथ।
कहने को तो युधिष्ठिर को भी, माना जाता है धर्मराज,
पत्नी को जुए में दाँव पर लगाना, कौन सी थी तार्किक बात,
निःसन्देह कौरवों ने किया था, द्रोपदी के साथ अनुचित व्यवहार,
किन्तु पति युधिष्ठिर ने भी, उन्हें कौन से कम दिये आघात,
जुए में हारी गई द्रोपदी, रानी से बन गयी दासी मात्र,
अपमानित हुई भरी सभा में द्रोपदी, क्या यही था धर्मराज का इंसाफ।
वर्तमान समय में भी, जस के तस हैं नारियों के हालात,
माना जाता है अब भी, उनको उपभोग की ही वस्तु मात्र,
होती हैं आज भी नारियाँ, भ्रूण हत्या की शिकार,
स्वयं परिजनों द्वारा ही, गर्भ में ही दी जाती हैं मार,
आज भी दहेज लोभियों द्वारा, दी जाती हैं बहुएं मार,
पति एवं ससुराली परिजन, नही दिखाते जरा भी दया भाव,
होती हैं आज भी नारियाँ, कुछ दूषित मानसिकता की शिकार,
बिगाड़ दी जाती है काया उनकी, उन पर है तेजाब डाल,
होती हैं आज भी नारियाँ, कभी छेड़छाड़ तो कभी हवस की शिकार,
अपरिचित तो करते ही हैं, प्रायः अपने भी करते हैं ये अत्याचार,
सभ्य नागरिक होने के नाते, क्या नही है ये हमारा कर्तव्य,
लें हम ये प्रण भविष्य में न हो, किसी भी नारी से कोई दुर्व्यवहार।
- काफिर चन्दौसवी
writer, poet and blogger