इस दुनिया में सबसे मुश्किल काम यकीन दिलाना है। कभी वफादारी का यकीन, कभी दोस्ती का, कभी मोहब्बत का और अक्सर अपनी सच्चाई का। ये शायद जमाने का दस्तूर हो चला है कि सही इंसान को तमाम आजमाइशों के बाद सही माना जाता है, जब वो हमारे लिए दर दर भटकता है, ख्वार होता है और कभी कभी बेयकीनी का जुनून इतना ज्यादा हो जाता है की सामने वाले की जान पर बन आती है। हम उसकी बातों और उसकी आंखों पर जो चीख चीख कर कहती हैं की मेरा यकीन करो, पर फिर भी हम अपनी अना में इतने कठोर हो जाते हैं की सच की चीख कहीं दबकर रह जाती है। हमें सबूत चाहिए होते हैं, और कभी कभी सबूत मिलने में इतना वक्त बीत जाता है की हम बस दिल में मलाल लिए, आंखों को शर्म से झुकाए खड़े रहते हैं और बस खड़े रह जाते हैं किसी बुत शिफत इंसान की तरह।
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