रोज रात सपनों में मेरे, मेरे साजन आते हैं।
आकर बैठ पार्श्व में मेरे, गीत मनोहर गाते हैं।।
जब तक वे रहते पास, नींद
जाने का नाम न लेती।
मैं उनसे रहती लगी, मगर
उनको परितोष न देती।।
कभी कभी वीणा लेकर वे उसके स्वर गुंताते हैं।
रोज रात सपनों में मेरे, मेरे साजन आते हैं।।
उनकी श्वांस सुरभि से सुरभित
रहता है परिवेश सदा।
मेरे नयनों की धारा का
बांध टूटता यदाकदा।।
मेरे साजन मुझे हमेशा खुशखबरी दे जाते हैं।
रोज रात सपनों में मेरे, मेरे साजन आते हैं।।
ज्योंही वे जाते हैं, त्योंही
मेरी नींद उचट जाती।
उनको अपने पास न पाकर
उर में पीर उभर आती।।
पल उनके वियोग के मुझको, नहीं तनिक भी भाते हैं।
रोज रात सपनों में मेरे , मेरे साजन आते हैं ।।
सपने उनसे मिलवाते, मैं
करती सपनों का स्वागत।
अभ्यर्थना न कर पाती मैं
हैं वे मेरे अभ्यागत।।
मुझसे बिना कुछ लिये मुझ पर, अपना प्रेम लुटाते हैं।
रोज रात सपनों में मेरे, मेरे साजन आते हैं।।
('बड़ी बात' से उद्धृत )
@ महेशचन्द्र त्रिपाठी