" बादशाह समझता हूं मैं खुद को। दूसरों पर हुक्म चलाने वाला बादशाह नहीं, अपने मन का बादशाह।" - यह कहने वाले सदाबहार अभिनेता देवानंद का जन्म 26 सितंबर, 1923 को गुरुदासपुर, जो अब पाकिस्तान में है, में हुआ था। उनके पिता प्रतिष्ठित वकील थे। पारिवारिक पृष्ठभूमि आर्यसमाजी थी। 1943 में जब वह मुंबई पहुंचे तो आजादी का आंदोलन जोरों पर था। देवानंद नेवी में जाना चाहते थे परंतु अर्हता परीक्षा पास कर लेने के बावजूद उनका अंतिम रूप से चयन नहीं हुआ क्योंकि उनके परिवार का संबंध आजादी आंदोलन से था। देवानंद ने 1943 में लीड रोल से अपना फिल्मी सफर शुरू किया था लेकिन बड़ा ब्रेक 1948 में फिल्म 'जिद्दी' से मिला था। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। बाद में उन्होंने अपनी कंपनी 'नवकेतन' बनाई और इसके माध्यम से कई हिट फिल्मों का निर्माण किया।
स्टारडम एक दलदल है जिसमें इंसान डूब जाता है। इस स्वीकारोक्ति के साथ जीने वाले देवानंद का पहला प्यार सुरैया थीं लेकिन उनके साथ शादी न हो सकी। उनका विवाह कल्पना कार्तिक से हुआ। उन्होंने अपने पारिवारिक दायित्वों और फिल्मी कैरियर को हमेशा अलग रखा। उन्होंने वहीदा रहमान को सबसे बड़ा ब्रेक 'गाइड' में दिया। उनका मानना था कि लड़कियों में अभिनय क्षमता जन्मजात होती है। नूतन के साथ उन्होंने कई फिल्में कीं। उनके मतानुसार, 'नूतन में सौंदर्य भी था और टैलेंट भी।' जीनत अमान, वैजयंती माला और हेमा मालिनी के साथ भी उनकी पटरी खूब बैठती थी।
1962 के बर्लिन फिल्म समारोह में देवानंद की भेंट नोबल पुरस्कार विजेता पर्ल बक से हुई। वहां उनकी फिल्म 'हम दोनों' प्रदर्शित की गई थी। पर्ल बक ने उनकी फिल्म को काफी सराहा था और उनके आग्रह पर ही देवानंद ने आर. के. नारायण के उपन्यास 'गाइड' पर हिंदी में फिल्म बनाई थी। आर. के. नारायण उनके प्रिय लेखकों में थे। अभिनय में उनका दिलफेंक और रूमानी अंदाज तो अनूठा था ही, फिल्मकार के रूप में भी उन्होंने दर्शकों को हमेशा नया देने की भरपूर कोशिश की। लगातार व्यस्त रहना, स्वयं में डूबे रहना, पार्टियों में बहुत कम जाना और शराब का लती न होना उनकी आदत थी। एक साक्षात्कार के दौरान उन्होंने स्वीकारा था - " मैं रोमांटिक आदमी हूं और मैंने जिंदगी को बड़े प्यार से, अपने ढंग से जिया है। रोमांस इंसान के लिए प्रेरणा है, बहुत ऊंचा उठाने वाला तत्व है।"
2003 के दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित देवानंद सिर्फ अभिनेता या फिल्म निर्माता ही नहीं, बल्कि सामाजिक सरोकारों से जुड़े जागरूक नागरिक भी थे। वक्त की मांग पर उन्होंने सार्वजनिक जीवन में उतरने से परहेज़ नहीं किया। लोकनायक जयप्रकाश नारायण से प्रभावित होकर उन्होंने राजनीतिक पार्टी भी बनाई और चुनाव भी लड़ा। बाॅलीवुड में छह दशक से ज्यादा समय तक राज करने वाले देवानंद का मानना था कि 'सृजनात्मकता एक तरह की बेचैनी है और सृजनशील व्यक्ति कभी चुपचाप नहीं बैठ सकता।' देवानंद का देहावसान 03 दिसंबर, 2011 को यूनाईटेड किंगडम की राजधानी लंदन में हुआ। आज भले ही उनका पार्थिव शरीर हमारे बीच न हो, परंतु उनकी यश: काया विद्यमान है। अंत में उनकी कालजयी काया को नमन करते हुए यही कहूंगा कि -
" दुर्व्यसनों से सदा दूर रह, थे जिंदगी बिताते।
फिल्म जगत के हर प्राणी से, थे मित्रता निभाते।।
उनकी याद न जाती उर से, उनकी देन अनूठी।
कोई हीरोइन उस युग की, उनसे कभी न रूठी।।"
@ महेश चन्द्र त्रिपाठी
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