वह मुसकाता संकट में भी, जो करता कविता से प्यार ।
कविता करती है जीवन के, सारे तापों का संहार ।।
जब अरमान अधूरे रहते, सपने होते चकनाचूर ।
तब कविता मानव के उर में, जिजीविषा भरती भरपूर ।।
ऊर्जा की अनुभूति कराती, देती अवचनीय आनन्द ।
दरवाजे तनाव-चिन्ता के, कविता कर देती है बन्द ।।
बीच अभावों के भावों का, कविता करती है संचार ।
कविता करती है जीवन के, सारे तापों का संहार ।।
सहृदयता का पाठ पढ़ाती, सिखलाती है करना प्रेम ।
वाहक सदा लोकमंगल की, करती वहन सभी का क्षेम ।।
आदर्शों का बोध कराती, अवमूल्यन देती है रोक ।
पाँव कुपथ पर जो धरते हैं, कविता उनको देती टोक ।।
हर भाषा, हर बोली में है, कविता का अद्भुत भण्डार ।
कविता करती है जीवन के, सारे तापों का संहार ।।
निर्बल का सम्बल बन जाती, अबला की आँखों का नीर ।
वीरों में वीरत्व जगाती, हर लेती उनकी हर पीर ।।
महानाश की बेला में यह, देती मानवता को त्राण ।
कविता संजीवनी समय की, यह लौटा लाती है प्राण ।।
इसकी सीमातीत देन से, लाभ उठाता है संसार ।
कविता करती है जीवन के, सारे तापों का संहार ।।
✍ महेश चन्द्र त्रिपाठी