पर्यावरण

कथनी और करनी

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12 Jun '24
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जागतिक पर्यावरण दिन के उपलक्ष मे

लाखो पेडो की बली चढाकर मैं झाड देता हूँ बडे बडे व्याख्यान पेड लगाने के लिये।
अभी अभी मैं सबजीवाली से दो चार प्लास्टिक की थैलीया मांगकर ले आया हूँ ढेर सारी सब्जीया।
धोकर चकाचक कर लाया हूँ मेरी फोर व्हीलर और टू व्हीलर गोदावरी के मटमैले जल मे।
आज शाम को ही मुझे गोदावरी पर भाषण देना है।
मेरे पास की जमाने से पडी साईकिल आज ही बेच डाली मैने कबाडी को।
पडोस की दो मिनट दुरी की दुकान पर धुआ उडाता  हुआ दो चार रपट लगाता हूँ दिन मे। 
दिन ब दिन गहराता जा रहा है कुओ का जल, नल की टोटिया उदास।
और मैं यथासंभव उंडेलता जाता हूँ जल कहा भी कही भी। 
ए सी चलाकर ठंडी हवा मे बैठकर सोंचता रहता हूँ ग्लोबल वार्मिंग के बारे मे। 
मुझे अचानक याद आया अरे! आज तो जागतिक पर्यावरण दिन है। 
दो चार पर्यावरण की किताबे खरीद लाया हूँ , प्लास्टिक की थैली मे रखकर।

संजीव आहिरे
नाशिक (महाराष्ट्र)

Category:Poetry



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Written by Sanjeev Ahire

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