25 जून ने देश को आपातकाल की याद दिला दी. सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपने अपने नफा नुकसान को देखते हुए आपातकाल के बारे में विचार व्यक्त किये. आपातकाल का जो दंश जनता और राजनीतिक दलों के मुख्य लोगों ने झेला. उनके अनुभवों पर इन राजनीतिक विचारों का कोई भी असर नहीं होता हैं.
कांग्रेस जो इस समय संविधान की रक्षक बनने का पाखंड कर रही है उस कांग्रेस परिवार ने अपनी राजनीतिक शक्ति बचाने के लिए देश पर आपातकाल थोप दिया. क्योंकि कांग्रेस एक पारवारिक पार्टी है जिसमे वर्तमान में चौथी पीढ़ी राजनीतिक शक्तियों से संपन्न हैं जैसी शक्ति से कभी पंडित नेहरू शक्ति संपन्न थे
आपातकाल में नागरिकों के मूल अधिकार नहीं होते है. देश में एक तरह से तानाशाही हो जाती है प्रधानमंत्री ने जो चाहा वो किया. मूल अधिकारों को छीनकर संविधान की आत्मा को मार देना संविधान की हत्या नहीं तो और क्या है
कांग्रेस को अपने इस असंवैधानिक कृत्य के लिए देश से माफ़ी मागनी चाहिए जिससे आपातकाल के पीड़ितों को कुछ सुकून मिल सके