एक था पेड़

हिंदी कविता



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एक था पेड़, सूखा सा, बूढ़ा सा, बेचारा,

उस पर हरियाली का, बिल्कुल भी नाम नहीं था,

पत्तों विहीन हो चुकी थीं, सारी शाखें उसकी,

फलों का भी, कोई नामो-निशां नहीं था,

छाया दे पाने में भी, अब असमर्थ हो चुका था अब वो,

इसलिए उपेक्षित कर देता था, हर पथिक उसको।

उसके पास में ही था, एक और पेड़ जो,

पूरा का पूरा ही, हरा-भरा था वो,

पत्तों से लदी हुईं थीं, सारी शाखें उसकी,

फलों का भी उस पर, अंबार लगा था,

भली-भाँति छायादार, भी था वो,

इसीलिए आकर्षित कर लेता था, सब को वो।

जो भी पथिक, उस राह से गुजरता,

उसकी शीतल छाया का, आनंद उठाता,

उसके फलों को भी, जी भर के खाता,

और उसकी प्रशंसा करते हुए, आगे बढ़ जाता।

ये देख सूखा पेड़ बेचारा, मन ही मन दुखी हो जाता,

अपनी इस दुर्दशा को देखकर, उसको रोना आता,

उसके मन में बीते दिनों का, ख्याल आ जाता,

उसे अपना सुनहरा अतीत, बहुत याद आता।

कभी वो भी, हुआ करता था हरा-भरा,

उस समय यही पथिक, उसकी छाया का आनंद थे लेते,

और उसके फलों को, स्वाद ले-लेकर खाते,

फिर उसकी प्रशंसा के गीत, गाते हुए चले जाते।

बीती बातें सोचकर, उसके मन में, यही प्रश्न था उठता,

अब भूले से भी कोई पथिक, मेरा नाम क्यों नहीं है लेता,

वो बेचारा नादान था, समझ नहीं पाया, यही है इस जग की रीत,

सुख में तो हैं साथी सभी, पर दुख में कोई न मीत।

      - काफ़िर चंदौसवी

Category:Poem



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Written by पुनीत शर्मा (काफिर चंदौसवी)

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writer, poet and blogger