आजकल शिक्षा का अर्थ मात्रा धन कमाना हो गया हैं प्राचीन समय में शिक्षा नैतिक जीवन, आर्थिक जीवन,राजनीतिक जीवन सब पक्षो को प्रभावित करत थी
बच्चों पर अधिक अंक लाने का ही दबाव नहीं होता अपितु उच्च स्तर का केरियर चुनने का भी दबाव होता है।
मै ऐसा मानती हूं कि शिक्षा मात्रा धन उपार्जन का साधन ना होकर आत्मसंयम और नैतिक संयम का भी आधार बने
अन्य आवश्यक विषयों के अतिरिक्त मानसिक संतुलन ,नैतिक विकास से संबंधित भी एक विषय होना चाहिए जहां विधार्थी विपरीत समय में धैर्य कैसे रखा जाए और किसी भी परिस्थिति में जीवन सर्वोपरि हैं ऐसी शिक्षा ले सकते हैं
शारीरिक शिक्षा पर तो आज की शिक्षा प्रणाली में बल दिया जाने लगा है परन्तु बच्चे सहयोग और समर्पण जैसे मूल्यों का अभाव होता जा रहता हैं
जहा हमारी संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम की थी उसका स्थान स्वार्थ लेता जा रहा है
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धन्यवाद
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